सर्वोच्च न्यायालय 'जूता कांड' लोकतंत्र पर अक्षम्य प्रहार
प्रो. नीलम महाजन सिंह
भारतीय संविधान एकीकृत न्यायिक प्रणाली स्थापित करता है, जिसके शीर्ष पर सर्वोच्च न्यायालय, राज्यों में उच्च न्यायालय और ज़िला स्तरों पर अधीनस्थ न्यायालय हैं। यह पदानुक्रमित संरचना अलग-अलग संघीय व राज्य न्यायालय प्रणालियों के बजाय एकल प्रणाली सुनिश्चित करती है, जो भारतिय संविधान की अनूठी विशेषता है। न्यायपालिका के मुख्य कार्यों में कानूनों की व्याख्या करना, विवादों का निपटारा करना व न्याय प्रशासन करना शामिल है, जो सरकार की अन्य दो शाखाओं (विधायिका व कार्यपालिका) पर नियंत्रण, संविधान एवं मौलिक अधिकारों के संरक्षक के रूप में कार्य करता है। समय-समय पर असंतुष्ट वादियों द्वारा ज़िला न्यायालयों में अभद्र भाषा का प्रयोग या जूते आदि फेंक कर असामान्य व्यवहार करने पर उन्हें तुरंत गिरफ़्तार कर लिया जाता है। ऐसे लोगों को 'न्यायालय की अवमानना' (Contempt of Court) के आरोप में छह महीने के लिए जेल भेज दिया जाता है व साथ ही जुर्माना भी लगाता है।
अब तक न्यायपालिका ही नागरिकों के लिए न्याय पाने की एकमात्र आशा है। लेकिन भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति बी.आर. गवाई, पर 72 वर्षीय अधिवक्ता राकेश किशोर द्वारा जूता फेंकने की घटना ने एक रहस्य उजागर किया है। इस अधिवक्ता को अब निलंबित कर दिया गया है।
बेंगलुरु पुलिस ने किशोर के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। अधिकारियों ने बताया कि अखिल भारतीय अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष, श्री भक्तवचला की शिकायत के बाद राकेश किशोर के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 132 (लोक सेवक को उसके कर्तव्य निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) और 133 (गंभीर उकसावे के अलावा किसी अन्य कारण से किसी व्यक्ति का अपमान करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल के प्रयोग) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है। एस.सी.बी.ए. की तरफ से प्रस्ताव जारी किया गया है कि एसोसिएशन ने एडवोकेट राकेश किशोर की अस्थाई सदस्यता, क्रमांक K-01029/ 27.07.2011 को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया है। इससे पहले किशोर के खिलाफ़ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही पर विचार किया जा रहा था।
इस संबंध में कानूनी कार्रवाई की मांग के लिए एटॉर्नी जनरल, तुषार मेहता को पत्र भेजा गया है। हालांकि घटना वाले दिन दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट परिसर में पूछताछ के बाद उसे छोड़ दिया था। इसके अलावा सीजेआई बी.आर. गवाई ने किशोर को छोड़ने के लिए कहा था। सर्वसम्मति से जारी सुप्रीम कोर्ट बार के प्रस्ताव में कहा गया कि 'कोर्ट के अधिकारी' - वकील, के लिए ऐसा दुर्व्यवहार अनुचित है। सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल को सूचित किया जा चुका है, व उसके 'एक्सेस कार्ड' (access card) को तत्काल प्रभाव से रद्द किया गया है। सुप्रीम कोर्ट की कोर्ट नंबर 01 में सुनवाई के दौरान 72 वर्षिय आरोपी राकेश किशोर ने पुलिस पूछताछ में बताया कि वह मॉरिशस में जस्टिस गवई की भगवान विष्णु पर की गई टिप्पणी से नाराज़ था। राकेश के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गवई की टिप्पणी सुनने के बाद से उसकी नींद उड़ गई थी। "रोज़ रात को भगवान मुझसे पूछते थे कि इतने अपमान के बाद मैं आराम कैसे कर रहा हूं"? किशोर ने खुद को किसी भी राजनीतिक दल से जुड़े होने का खंडन किया है। उसका कहना है कि इस कृत्य के लिए वह जेल जाने को तैयार है। सी. जी.आई. गवाई पर जूता फेंकने के बाद राकेश चिल्लाने लगा, "सनातन का यह अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान।" हमले के बाद सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के सचिव मीनीश दुबे ने राकेश से बातचीत की व बताया कि उसे अपने किए पर बिल्कुल पछतावा नहीं है। मॉरिशस में जस्टिस गवई ने कहा था, "भारत की न्याय व्यवस्था कानून के शासन के तहत चलती है, बुलडोज़र के शासन के तहत नहीं"। पीएम नरेंद्र मोदी ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया में कहा, "हर भारतीय के लिए यह घटना अपमानजनक है।
न्यायाधीशों के अधिकारों का अनादर नहीं किया जा सकता है"। किशोर ने जवारी मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। यह मंदिर यूनेस्को विश्व धरोहर सूची (UNESCO Global Heritage) में शामिल, खजुराहो मंदिर परिसर का हिस्सा है। जस्टिस गवाई की अध्यक्षता वाली बेंच ने याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि यह मामला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archeological Survey of India) के अंतर्गत आता है। साथ ही उन्होंने याचिकाकर्ता से कहा, "भगवान से कहो कि वही कुछ करें"। सारांंशार्थ, 1968 में एक सिरफिरे व्यक्ति ने न्यायमूर्ति मोहम्मद हिदायतुल्लाह, न्यायमूर्ति सी.ए. वैद्यलिंगम और न्यायमूर्ति ए.एन. ग्रोवर की पीठ पर, चाकू लहराते हुए हमला किया। न्यायमूर्ति ग्रोवर को दो चोटें आईं थीं, एक गिरने से पहले व दूसरी जब हमलावर ने तीनों के गिरने के बाद उन्हें चाकू मारने की कोशिश की थी। यह भयानक परिस्थिति है। मैं जस्टिस गवाई से सहमत नहीं हूँ कि किशोर पर कोई अवमानना की कार्यवाही नहीं होनी चाहिए। बहुमुखी धर्मों व जातियों का देश, इस प्रकार की तुच्छ राजनीति नहीं कर सकता। यदि इस कानून के उलंघनकर्ता पर कोई कार्रवाई नहीं हुई तो यह स्पष्ट है कि न्यायपालिका को अपना ही सम्मान नहीं है।
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र, भारत में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पर यह जूता फेंकना मात्र नहीं है, परंतु यह प्रजातांत्रिक प्रणाली का घोर अपमान है। चाहे कोर्ट-कचहरियां नागरिकों को पूर्ण न्याय देने में विफल हैं, फ़िर भी इस प्रकार की अराजकता को स्वीकार करना भारतीयता के लिए असंभव है। सभी को विधिवत कार्यशैली को अपनाना चाहिए कयोंकि भारत प्रजातंत्र है, जंगल राज नहीं।
प्रो. नीलम महाजन सिंह
(वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक, अधिवक्ता: मानवाधिकार संरक्षण व परोपकारक)
singhnofficial@gmail.com
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