सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने पाकिस्तानी आतंकवाद को निर्वस्त्र किया
प्रो. नीलम महाजन सिंह
भारत सरकार द्वारा गठित सर्वदलीय ग्रुप विश्वभर में, भारत की 'आतंकवाद के प्रति ज़ीरो टॉलरेंस की नीति' को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समक्ष रख रहे हैं। 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद, भारत सरकार ने 23 मई, 2025 के बाद एक प्रमुख कूटनीतिक पहल में, संसद सदस्यों के सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों को प्रमुख वैश्विक राजधानियों में भेजा है, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ एक 'संयुक्त राष्ट्रीय दृष्टिकोण' प्रस्तुत करना है। विभिन्न दलों के सांसदों व पूर्व मंत्रियों, 8 पूर्व राजदूतों सहित, 51 राजनीतिक नेता, 25 देशों का दौरा कर रहे हैं, जिनमें 'संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद' (यूएनएससी) के सदस्य देश व अन्य प्रभावशाली देश शामिल हैं।
10 दिवसीय 'आउटरीच मिशन' का नेतृत्व वरिष्ठ सांसद डॉ. शशि थरूर, रविशंकर प्रसाद, संजय कुमार झा, बैजयंत पांडा, कनिमोझी करुणानिधि, सुप्रिया सुले और एकनाथ शिंदे करेंगें। इस का समन्वय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा किया जा रहा है, जिन्होंने कार्यक्रम की घोषणा के तुरंत बाद प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों और उनके संबंधित गंतव्यों की पूरी सूची जारी की। नरेंद्र मोदी सरकार ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल को ब्रीफिंग में बताया कि इन 25 देशों के चयन का आधार क्या था? विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने मीडिया को यह जानकारी दी। "हम उन सभी देशों में जा रहे हैं जो यूएनएससी (UNSC) के सदस्य हैं, उनकी संख्या लगभग 15 है। हम पाँच अन्य देशों में भी जा रहे हैं जो आने वाले दिनों में यूएनएससी के सदस्य बनेंगें। इसलिए, प्रतिनिधि 25 से अधिक देशों में जा रहे हैं," भाजपा सांसद अपराजिता सारंगी ने विदेश सचिव विक्रम मिस्री का हवाला दिया।
पाकिस्तान अगले 17 महीनों तक यूएनएससी का सदस्य रहेगा, इसलिए भारत इस मंच का उपयोग कर, 'पाकिस्तान की झूठी कहानी को फैलाने को रोकना चाहता है"। इसलिए, सरकार ने 'ऑपरेशन सिंदूर' की कहानी को नाकाब कर, भारत का पक्ष प्रस्तुत किया है। पाकिस्तान ने अतीत में कई मौकों पर यूएनएससी का इस्तेमाल, 'भारत विरोधी टिप्पणीयों' की हैं, ताकि वो अपनी कहानी को आगे बढ़ा सके। ग़ौरतलब है कि जब यूएनएससी में बैठक होगी तो पाकिस्तान निश्चित रूप से अपना पक्ष रखेगाने व भारत विरोधी दावे भी करेगा। इसलिए अब यह जरूरी हो गया था कि भारत विभिन्न राजनीतिक दलों के समर्थन से विभिन्न देशों में जाएं, नौकरशाही और राजनीतिक प्रतिनिधियों के सामने भारत का पक्ष रखें। नरेंद्र मोदी सरकार यह संदेश देना चाहती है कि भारत आतंकवाद के खिलाफ एकजुट है। पीएम नरेेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार देश के 140 करोड़ लोगों की सुरक्षा का सम्मान करती है।
आतंकवाद के प्रति 'ज़ीरो-टाॅलरेंस' है। एक महीने पहले आतंकवादियों की बंदूकों ने 26 निर्दोष लोगों को मार डाला। जवाबी कार्रवाई में भारत ने 7 मई को 'ऑपरेशन सिंदूर' शुरू किया। सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान व 'पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर' (Pakistan Occupied Kashmir) में नौ आतंकी ढांचों को निशाना बनाया व करीब 100 आतंकवादियों को मार गिराया।
अब भारत को बहुउपयोगी मोबाइल युद्ध मशीनें, सशस्त्र ड्रोन खरीदने की ज़रूरत है जो जर्मनी में बनें हैं, व जिनका इस्तेमाल यूक्रेन की सेना भी कर रही है। क्या सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भारत के रुख को मज़बूत करेगा? सही हो या गलत, महान शक्तियां, व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत एक होने का दावा करता है। अपनी कार्रवाई को तर्कसंगत बनाने के लिए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल विदेश भेजे गये हैं। परंतु क्या इस कूटनीतिक प्रयास का कोई सकारात्मक प्रभाव होगा? रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण को उचित ठहराने के लिए ऐसा नहीं किया; इराक पर आक्रमण के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी ऐसा नहीं किया। यहां तक कि इज़रायल ने भी सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजकर गाज़ा पर आक्रमण को दुनिया के सामने तर्कसंगत बनाने की ज़ररत महसूस नहीं की। अगर पाकिस्तान, बिलावल भुट्टो के नेतृत्व में अपने कार्यों को उचित ठहराने या दुनिया के सामने भारत की शिकाय करने के लिए प्रतिनिधिमंडल भेज रहा था, तो उसे ऐसा करने देते। भारत को 'प्रचार मोड' में जाने के बजाय खुद को सामान्य कूटनीतिक संचार तक सीमित रखना चाहिए था। यह सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों का दौरा एक विशाल जनसंपर्क अभ्यास है, जो यह दिखाने के लिए है कि पाकिस्तान के साथ सैन्य संघर्ष के मोदी सरकार के आख्यान के पीछे भारत एकजुट है। क्या ये प्रतिनिधिमंडल मई 2025 के पहले पखवाड़े की घटनाओं के बारे में वैश्विक समुदाय द्वारा पहले से किए गए आकलन में बदलाव ला पाएंगें? जिन देशों का दौरा किया जा रहा है, उन सभी के राजनयिक मिशन नई दिल्ली में हैं। विदेश मंत्री या विदेश सचिव आसानी से मिशन प्रमुखों को भारत की स्थिति के बारे में जानकारी दे सकते थे। खैर मोदी सरकार जानती है कि पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले की दुनिया ने निंदा की है, लेकिन बहुत कम देशों ने सीधे तौर पर इसके लिए पाकिस्तान को दोषी ठहराया है। शायद उन्हें लगा कि भारत ने 6 व 7 मई की रात को आतंकवादी ठिकानों पर हवाई हमले करके पाकिस्तान को ‘दंडित’ करके जल्दबाज़ी की है। केवल अफगानिस्तान व इज़रायल में तालिबान की गैर-मान्यता प्राप्त सरकार ने पहलगाम हमले के लिए पाकिस्तान को दोषी ठहराया।
ईरान ने आतंकवाद के खिलाफ मज़बूत क्षेत्रीय सहयोग की आवश्यकता पर ज़ोर दिया, व फ्रांस ने पहलगाम पर शोक व्यक्त करते हुए पुष्टि की, कि वह "आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ खड़ा है"। कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका व यूरोपीय संघ के जी-7 विदेश मंत्रियों ने हमले की निंदा करते हुए एक संयुक्त बयान जारी किया है, जिसमें भारत-पकिस्तान में तनाव कम करने का आग्रह किया गया है। क्या भारत इस बात का सबूत दे पाएगा कि पहलगाम में हमला करने वाले आतंकवादी वास्तव में पाकिस्तानी नागरिक हैं, या वे दुनिया से कहेंगे कि वे भारत की बात पर विश्वास करें? क्या ये प्रतिनिधिमंडल भारत के सैन्य नुकसानों के बारे में बात कर पाएंगें, जिसमें कथित तौर पर उसके द्वारा खोए गए लड़ाकू विमान भी शामिल हैं? घरेलू व अंतरराष्ट्रीय दोनों तरह की अस्पष्टता, कूटनीतिक हमले के प्रभाव को कमज़ोर कर सकती है। क्या अमेरिका जाने वाले प्रतिनिधिमंडल के नेता डॉ. शशि थरूर, डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन को बता सकते हैं कि भारत को लगता है कि यह राष्ट्रपति ट्रम्प ने नहीं किया, जिन्होंने भारत-पाकिस्तान युद्ध विराम में मदद की, बल्कि यह पाकिस्तान के सैन्य संचालन महानिदेशक द्वारा शांति के लिए मुकदमा दायर करने के बाद हुआ? चूंकि बातचीत दोतरफा प्रक्रिया की है, इसलिए भारतीय प्रतिनिधिमंडल को कोडसंयम बरतने का कूटनीतिक उपयोग करना चाहिए। कांग्रेस पार्टी, उम्मीदवारों के बजाय डॉ. थरूर व मनीष तिवारी को शामिल करने का विरोध करते हुए आंतरिक लड़ाई में उलझ गई है। जिस मुद्दे का इस्तेमाल कांग्रेस, मोदी सरकार की आलोचना करने के लिए कर सकती थी, वहां कांग्रेस का गुटीय मुद्दा बन गया। इस बीच, खुफ़िया विफलता के लिए
ज़िम्मेदार, इंटेलिजेंस ब्यूरो, रॉ, ज.के. पुलिस, सेना का खुफिया विभाग आदि ने कोई उत्तर नहीं दिया।राजनीतिक विचारधारा से ऊपर उठकर सांसद, सरकार के कथन के पीछे खड़े हैं, तो फ़िर संसद के विशेष सत्र या पहलगाम त्रासदी व ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा से क्या हासिल होगा? विपक्ष पहले ही सरकार के आधिकारिक कथन में हिस्सेदार बन चुका है। नतीजतन, ऑपरेशन सिंदूर के ज़रिए मोदी सरकार के रणनीतिक व राजनीतिक संदेश पर सवाल उठाने के लिए संसद में उसका प्रभाव कम हो जाएगा। सारांशार्थ यह कहा जा सकता है कि मैं व्यक्तिगत रूप से 'सिंदूर - मंगलसूत्र' आदि जैसे शब्दों को स्वीकार नहीं करती हूँ। ये केवल हिंदुओं के सामाजिक चिन्ह हैं व इसमें ईसाई, मुस्लिम, सिख व कई अन्य धर्म शामिल नहीं हैं। एक सैन्य अभियान का तकनीकी नाम होना चाहिए, जैसे 'ऑपरेशन पराक्रम या ऑपरेशन टेरर इरेज़र' आदि। जो भी हो मेरा अपना आंकलन है कि, जबकि सभी राजनीतिक दलों ने सामूहिक रूप से पहलगाम में निर्दोष पर्यटकों पर उनके धर्म के आधार पर किए गए भयानक आतंकवादी हमले की निंदा की है, फिर भी व्यापक सवाल यह है कि उन क्रिमिनलज़ को आज तक गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया? कहां भाग गए वे? अब एक महीने से अधिक समय हो गया है, और ये अपराधी पकड़ से बाहर हैं।
इन अपराधियों को पकड़ने में जम्मू-कश्मीर पुलिस की विफलता है। पीड़ित परिवारों का दर्द, दिल दहला देने वाला है, फ़िर भी उन्हें कोई समाधान नहीं मिला है, क्योंकि हत्यारे खुलेआम घूम रहे हैं। अनुच्छेद 370 के हटने के बाद भी कश्मीर का मुद्दा सुलझा नहीं है। कश्मीर के लोगों व आने वाले पर्यटकों को सुरक्षा प्रदान करना सरकार का कर्तव्य है। कश्मीर घाटी में झेलम, सिंधु, चिनाब, रावी, तवी, किशनगंगा, नीलम आदि नदियों में; 78 सालों में बहुत खून बह चुका है। 1990 के दशक से हमारे रक्षा कर्मियों का भी खून बह रहा है। युद्ध कभी भी भौगोलिक राजनीतिक दुश्मनी का समाधान नहीं होते हैं। किसी भी मामले में, वैश्विक राष्ट्रों की एकता दुर्लभ है। युद्ध; शान्ति का समाधान नहीं है। 'कश्मीर': भारत-पकिस्तान दुश्मनी का स्थायी मुद्दा रहेगा इसके लिए भारतीय डिफेंस सेवाओं को मज़बूत करना होगा। आतंकवाद का धर्म नहीं होता, परंतु पहलगाम का आतंकवाद 'धर्म केन्द्रित रहा'।
प्रो. नीलम महाजन सिंह
(वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक, शिक्षाविद, दूरदर्शन व्यक्तित्व, सॉलिसिटर फॉर ह्यूमन राइट्स संरक्षण व परोपकारक)
singhnofficial@gmail.com
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