प्रो. नीलम महाजन सिंह
05.04.2025 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने वक्फ संशोधन बिल को हस्ताक्षरित करने से अब यह कानून है। यह कानून नरेंद्र मोदी सरकार ने अत्याधिक तीव्रता से पारित किया है। इस अधिनियमित कानून से भारतीय मुसलमानों के जीवन में क्या बदलाव होगा? 30 करोड़ से अधिक मुस्लिम आबादी भारतीय है। क्यों वे सरकार की नीयत पर सवाल उठा रहें हैं? दुनिया में जितनी भी वक्फ संपत्ति है, उसमें सबसे ज्यादा संपत्ति भारत में है, बावजूद इसके भारत का मुसलमान वर्ग पिछड़ा व अल्पशिक्षित है। मोदी सरकार के अनुसार पिछड़े मुसलमानों को उनका हक दिलाने व वक्फ का सही इस्तेमाल हो, इसकी व्यवस्था के लिए वक्फ संशोधन विधेयक: 2025 लाया गया है। यह दावा केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार कर रही है।
केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्यमंत्री किरन रिजीजू ने संसद में कहा था कि 1993 में यूपीए सरकार ने वक्फ अधिनियम के ज़रिये इसे अन्य कानूनों से ऊपर कर दिया था, यही वजह है कि इसमें नये संशोधनों की ज़रूरत पड़ी। मोदी सरकार की क्या मंशा है? सरकार किसी भी सूरत में धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का इरादा नहीं रखती है। मोदी सरकार मात्र यह चाहती है कि वक्फ बोर्ड अपनी मनमानी ना करे, लेकिन मुस्लिम समाज व सरकार के विरोधी यह कह रहे हैं कि सरकार की नियति में पारदर्शिता नहीं है। मुसलमानों के जीवन में क्या परिवर्तन होगा? इस पर प्रबुद्ध मुसलमान क्या विचार रखते हैं? क्या हैं वक्फ बोर्ड कानून 2025 के मुख्य बिन्दु, इसे संक्षिप्त में समझना होगा। 2 अप्रैल 2025 को संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी (Joint Parliamentary Committee) की सिफारिशों के बाद वक्फ बिल 2025 को sansad में पेश हुआ।
सरकार ने बिल पेश करते हुए यह स्पष्ट किया कि सरकार का नज़रिया पिछड़े मुसलमानों की स्थिति सुधारने व उनके कल्याण के लिए वक्फ की संपत्ति का सही इस्तेमाल होने पर है। संशोधनों में वक्फ बिल में क्या प्रावधान हैं? मुस्लिम पक्ष व कांग्रेस, तृणमूल, डी एमके एआई डी एम के,
जैसी विरोधी पार्टियां यह दावा कर रही हैं कि सरकार वक्फ बोर्ड के अधिकारों को सीमित कर रही है, ताकि मुसलमानों से उनकी संपत्ति छीनी जा सके। भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी संविधान के अनुच्छेद 25-28 में दी गई है। ये अनुच्छेद सभी नागरिकों को अपने धर्म का अनुसरण करने व उसका प्रचार करने के अधिकार की रक्षा करते हैं।
सलमान खुर्शीद का तर्क: "पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की कैबिनेट में, अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री के रूप में, 2013 में वक्फ अधिनियम 1995 में संशोधन के दौरान, मुस्लिम समाज के कुछ नेताओं ने भेड़ियों की तरह चिल्लाना शुरू कर दिया था। अधिनियम में कुछ बिंदुओं को ठीक किया गया। कुछ रूढ़िवादी वर्गों की ओर से आक्रामक प्रतिक्रिया ने उद्देश्यों पर सवाल उठाने की कोशिश की। इस अधिनियम को पारित करने में असंवेदनशीलता के आरोप लगाए गए, जबकि अधिकांश मुस्लिम नेता नमाज़ के लिए बाहर गए हुए थे। जब मैं पीछे देखता हूँ, तो मुझे मुस्लिम समुदाय के नेताओं की अदूरदर्शिता नज़र आती है। मैं यह कल्पना नहीं कर पाता कि बार-बार 'भेड़िया चिल्लाना' उन्हें कमज़ोर बना देगा। अगर भेड़िया वास्तव में हमला कर दे तो फ़िर जिस बात का डर तब होना चाहिए था, वही अब हो रहा है"। जिन प्रावधानों की वजह से नरेंद्र मोदी सरकार के वक्फ बिल का विरोध हो रहा है वे इस प्रकार हैं: इस बोर्ड में 10 मुस्लिम सदस्य होंगें, जिनमें से दो महिलाओं का होना अनिवार्य है। वक्फ बोर्ड में कुल 22 सदस्य होंगें, 2 अप्रैल 2025 को जब बिल लोकसभा में पेश हुआ था, तो इसमें गैर मुसलमान सदस्यों की बात हुई थी, लेकिन बाद में इसमें संशोधन कर दिया गया व अब कोई भी गैर मुसलमान बोर्ड में शामिल नहीं होगा। अधिकारियों सहित संसद के 3 सांसद भी सेंट्रल काउंसिल के सदस्य होंगें, जो किसी भी धर्म के हो सकते हैं। वक्फ बोर्ड में शिया - सुन्नी दोनों संप्रदाय के मुसलमान शामिल होंगें। अब वक्फ ट्रिब्यूनल का फैसला अंतिम नहीं होगा, उसे रेवेन्यू कोर्ट, सिविल कोर्ट व हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। वक्फ की संपत्ति का रजिस्ट्रेशन ज़रूरी होगा। वक्फ की पूरी संपत्ति का ब्यौरा वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा। वैसी संपत्ति वक्फ की नहीं मानी जाएगी, जिसपर किसी का हक हो। यानी महिला व बच्चों के अधिकारों को दरकिनार कर, कोई संपत्ति वक्फ की नहीं हो सकती है। इस्तेमाल के आधार पर वक्फ की संपत्ति का दावा मान्य नहीं होगा, उसके लिए रजिस्ट्रेशन ज़रूरी है। वक्फ बोर्ड के अधिकारों को सीमित किया गया है व ज़िला कलेक्टर की भूमिका को बढ़ाया गया है। अब वक्फ संपत्ति के सर्वेक्षण का अधिकार ज़िला कलेक्टर के पास है। पहले यह कार्य एक 'स्वंतत्र सर्वेक्षण आयुक्त' (Assessment Commissioner) करता था। अब वक्फ संपत्ति की पहचान और उसके दस्तावेजीकरण (documentation) के लिए कलेक्टर सीधे तौर पर ज़िम्मेदार होंगें। कोई संपत्ति वक्फ संपत्ति है या नहीं इस पर विवाद होने पर अब फैसला ज़िला कलेक्टर द्वारा लिया जाएगा, जबकिन पहले यह अधिकार 'वक्फ ट्रिब्यूनल' के पास था। वक्फ बोर्ड के कार्यों का ऑडिट होगा।
आदिवासियों की ज़मीन को संरक्षित करने के लिए सरकार ने यह प्रावधान किया है कि उनकी ज़मीन पर वक्फ बोर्ड दावा नहीं कर पायेगी। केंद्रीय अल्प संख्यक कार्यमंत्री किरन रिजीजू का दावा है कि वक्फ संशोधन विधेयक मुसलमानों की सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक स्थिति में बड़ा परिवर्तन लाया है। रिजीजू यह दावा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि विश्व में सबसे ज्यादा वक्फ प्रोपरिटी भारत में है। लगभग 9.4 लाख एकड़ जमीन है और 8.72 लाख संपत्ति हैं, जिनसे ₹200 करोड़ रुपये कमाई है। सरकार वक्फ प्रोपर्टी का सही इस्तेमाल कर उनका उपयोग गरीब मुसलमानों के लिए करना चाहती है। पसमांदा मुसमानों का जीवन स्तर सुधरेगा तथा इससे महिलाओं व बच्चों को फ़ायदा मिलेगा। क्या कहते हैं प्रबुद्ध मुसलमान? पिछले साल जब अगस्त महीने में वक्फ बिल संसद में पेश किया गया था, तो लेखिका ने अनेक प्रबुद्ध मुसलमानों से बातचीत व भेंटवार्ता की थी। उनका यह मानना था कि मोदी सरकार के नीयत में खोट है व वे मुसलमानों के हिताय के लिए यह विधेयक लेकर नहीं आई है। मौलाना तहज़ीब इमाम साजिद रशीदी, हाजी मोहम्मद हारुन व अनवर कासमी ने शंका जताई थी कि सरकार वक्फ बोर्ड पर अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहती है। उनका तर्क था कि, "हमारा यह मानना है कि वक्फ मुसलमानों का निजी और धार्मिक मसला है, जिसमें सरकार को दखल नहीं देना चाहिए"। गैर मुसलमानों को भी बोर्ड में शामिल करने के वे खिलाफ थे और उनका काउन्टर था कि क्या राममंदिर के ट्रस्ट में किसी मुसलमान को जगह दी जाएगी? अगर दी जाएगी तो हम भी वक्फ बोर्ड में गैर मुसलमानों को जगह देने के लिए तैयार हैं। क्या है वक्फ बोर्ड? 'अल्लाह के नाम पर' (In the name of Allah) दान की गई वस्तु, जिसका उद्देश्य परोपकार हो उसे 'वक्फ' कहते हैं। वक्फ बोर्ड उन चीज़ों की निगरानी करता है जो 'अल्लाह के नाम पर दान' की गई हों। वक्फ बोर्ड द्वारा दान में मिली चल-अचल संपत्ति का सही इस्तेमाल हो; इसकी व्यवस्था देखता है। इस्लाम के अनुसार वह इसका उपयोग मस्जिद बनवाना, मदरसे, शिक्षा की व्यवस्था करवाना, इमाम बाड़े, कॉलेज, चिकित्सालय व अन्य धार्मिक काम करवाने का है. वक्फ एक्ट:2025 पर मुस्लिम धर्मगुरुओं ने कहा, यह ज़ुल्म है, क्या राम मंदिर ट्रस्ट में शामिल होगा गैर हिंदू? वक्फ संशोधन बिल को लेकर लोकसभा में काफी लंबी चर्चा चली, देर रात इसे पारित भी करवा दिया गया। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, "ज़कात व वक्फ धार्मिक हैं, परंतु बोर्ड या काउंसिल को धार्मिक नहीं माना जा सकता। विरोधी दल मात्र भ्रम फ़ैलाने के कोई सार्थक कार्य नहीं कर रहे हैं"। अब असल में ये सारे वो सवाल हैं जो कहीं ना कहीं मुस्लिम समाज की कुछ आपत्तियां हैं। यहां सरल शब्दों में जानने की कोशिश करते हैं कि वक्फ कानून:2025 को लेकर बड़ी आपत्तियां क्या हैं? आखिर मुस्लिम समाज पर दबाव व बदलाव की ज़रूरत क्यों है? प्रथम; मुस्लिम समाज को एक सबसे बड़ी आपत्ति इस बात को लेकर है कि सरकार को अब ऐसी ज़रूरत क्यों महसूस हुई कि उसे वक्फ की प्रॉपर्टी को मैनेज करने के लिए एक परिवर्तित कानून की ज़रूरत पड़ी। कई मुस्लिम बुद्धिजीवी इसे सराकरी हस्तक्षेप के रूप में देख रहे हैं। यहां तक कहा जा रहा है कि ऐसा कर सरकार मुस्लिमों के अधिकारों का हनन कर रही है। द्वितीय - सरकारी हस्तक्षेप बढ़ता जाएगा। अब सरकार तय करेगी कि आखिर कौन सी प्रॉपर्टी वक्फ की है और कौन सी नहीं। इसके ऊपर सरकार द्वारा लाए गए बिल का सेक्शन 40 कहता है कि वक्फ बोर्ड इस बात का फैसला लेगा कि किसी ज़मीन को वक्फ का माना जाए या नहीं। अब यहां पर विवाद इस बात को लेकर है कि यह फैसला लेने की ताकत किसी 'वक्फ ट्रिब्यूनल' के पास ना होकर डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर के पास होगी। तृतीय; 'वक्फ बाय यूजर्स क्लॉज' (Waqf by users clause) हटाने की बात; वक्फ ज़मीनों को लेकर है, जो पुराना कानून था। उस के अनुसार अगर कोई ज़मीन लंबे समय से वक्फ द्वारा इस्तेमाल की जा रही है तो उसे वक्फ का ही माना जायेगा। तब अगर ज़रूरी कागज़ात नहीं भी होते थे, तब भी उस ज़मीन को वक्फ का मान लिया जाता था। लेकिन अब, जब यह कानून बन गया है, तो इसमें से इस शब्दार्थ को हटा दिया गया है। इससे होगा यह कि अगर कोई प्रॉपर्टी वक्फ की नहीं है तो उसे संदिग्ध माना जाएगा। यह तर्क नहीं दिया जा सकेगा कि क्योंकि पहले से ही इस प्रॉपर्टी पर वक्फ काम कर रहा था, तो इस पर अधिकार भी उनका ही रहेगा। चतुर्थ; गैर-मुस्लिम सदस्य की वक्फ बोर्ड में एंट्री, वक्फ ट्रिब्यूनल में पहले सिर्फ मुस्लिम समाज का कोई शख्स ही 'सीईओ' के पद पर बैठ सकता था। लेकिन अब गैर मुस्लिम को भी 'सीईओ' बनाया जा सकता है। यहां तक कहा गया है कि बोर्ड में दो गैर मुस्लिम सदस्यों को शामिल किया जाएगा। आगाखानी, खोजा व बोहरा समाज का प्रतिनिधित्व भी वक्फ बोर्ड में देखने को मिल सकता है। पांचवां; वक्फ प्रॉपर्टीज का सर्वे: 1995 का जो कानून चल रहा था, वो कहता था कि अगर किसी वक्फ प्रॉपर्टी का सर्वे होगा तो उसमें 'सर्वे कमिश्नर' नियुक्त करने की ताकत राज्य सरकार के पास होगी। अब नए कानून के बाद यह ताकत 'डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर' को दी गई है। सरकार का तर्क है कि सर्वे में पारदर्शिता की कमी रहती थी। गुजरात व उत्तराखंड जैसे राज्य में तो कई जगह अभी सर्वे शुरू भी नहीं हो पाए हैं।
लेकिन (AIMIM) एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी मानते हैं कि वक्फ की ऐसी ज़मीनें हैं जिन्हें अवैध तरीके से पहले ही हड़प लिया गया है। ऐसे में अब इन बदलावों की वजह से उन विवादित ज़मीनों पर भी सरकार अपना कब्ज़ा करेगी। सलमान खुर्शीद, वरिष्ठ अधिवक्ता व पूर्व केन्द्रीय विदेश मंत्री ने अपने लेखों और व्यक्तवयों में स्पष्ट किया है कि नरेंद मोदी सरकार, सामाजिक ध्रुवीकरण व संविधान के अनुच्छेद 24 - 30 के विरोध में कार्यरत है। मनु अभिषेक सिंघवी, वरिष्ठ अधिवक्ता ने चेतावनी दी है कि मोदी सरकार अपनी संख्या का दुरुपयोग कर, आनन-फानन में यह कानून लायी है, जिसे न्यायालय निरस्त कर देगा। नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड से अनेक मुस्लिम सांसदों व विधायकों ने पार्ट से इस्तीफा दे दिया है, क्योंकि नीतीश कुमार ने संसद में इस बिल को समर्थन दिया था। दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल व उपचांसलर ऑफ जामिया मिलिया इस्लामिया, नजीब जंग, ने खेद प्रकट किया कि भारत में मुस्लिम जनसंख्या विश्व में अत्यधिक है. समाज के सभी समुदायों को संभाव से देखने की जरूरत है. मोदी सरकार का यह फैसला आने वाली पीड़ियों के लिए पीड़ादायक है। एआईडीएमके, डीएमके, एआईएमआईएम, आरजेडी कांग्रेस तथा अनेक जागरूक नागरिक व मुस्लिम संस्थानों ने सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया में इस कानून को चुनौती देते हुए, इसे रद्द करने के अनेक केस दर्ज किए हैं। यह लंबी कानूनी लड़ाई होगी। क्योंकि यह कानून नरेंद्र मोदी सरकार ने लागू किया है, इसलिए सामाजिक सौहार्द व नागरिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने का कर्तव्य भी उनका होगा। मुस्लिम समाज के असंतुष्ट वर्ग से भी उम्मीद है कि वे अपने संघर्ष को शांतिपूर्वक व न्यायसंगत रखेंगें।
प्रो. नीलम महाजन सिंह
(वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक, शिक्षाविद, दूरदर्शन व्यक्तित्व, सॉलिसिटर फॉर ह्यूमन राइट्स संरक्षण व परोपकारक)
singhnofficial@gmail.com
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