Book Review by Prof. Neelam Mahajan Singh पुस्तक मूल्यांकन: 'एंगर मैनेजमेंट: दी ट्रबल्ड डिप्लोमैटिक रिलेशनशिप बिटवीन इंडिया एंड पाकिस्तान': अजय बिसारिया, आई.एफ.एस। प्रकाशन: ऐलेफ बुक कंपनी, मार्केट वितरण सहायक: रुपा पब्लिकेशंस, 527 पेज, प्रकाशन वर्ष: 2024 ~ प्रो: नीलम महाजन सिंह (द्वारा विश्लेषण) ~
Book Review by Prof. Neelam Mahajan Singh
पुस्तक मूल्यांकन: 'एंगर मैनेजमेंट: दी ट्रबल्ड डिप्लोमैटिक रिलेशनशिप बिटवीन इंडिया एंड पाकिस्तान': अजय बिसारिया, आई.एफ.एस। प्रकाशन: ऐलेफ बुक कंपनी, मार्केट वितरण सहायक: रुपा पब्लिकेशंस, 527 पेज, प्रकाशन वर्ष: 2024.
~ प्रो: नीलम महाजन सिंह (द्वारा विश्लेषण) ~
𝐁𝐨𝐨𝐤 𝐑𝐞𝐯𝐢𝐞𝐰 : 𝐀𝐧𝐠𝐞𝐫 𝐌𝐚𝐧𝐚𝐠𝐞𝐦𝐞𝐧𝐭, 𝐓𝐡𝐞 𝐓𝐫𝐨𝐮𝐛𝐥𝐞𝐝 𝐃𝐢𝐩𝐥𝐨𝐦𝐚𝐭𝐢𝐜 𝐑𝐞𝐥𝐚𝐭𝐢𝐨𝐧𝐬𝐡𝐢𝐩 𝐁𝐞𝐭𝐰𝐞𝐞𝐧 𝐈𝐧𝐝𝐢𝐚 𝐀𝐧𝐝 𝐏𝐚𝐤𝐢𝐬𝐭𝐚𝐧, 𝐚𝐮𝐭𝐡𝐨𝐫𝐞𝐝 𝐛𝐲 𝐀𝐣𝐚𝐲 𝐁𝐢𝐬𝐚𝐫𝐢𝐚.
𝟓𝟐𝟕 𝐩𝐚𝐠𝐞𝐬. 𝐏𝐮𝐛𝐥𝐢𝐬𝐡𝐞𝐝 𝐛𝐲: 𝐀𝐥𝐞𝐩𝐡 𝐁𝐨𝐨𝐤 𝐂𝐨𝐦𝐩𝐚𝐧𝐲 𝐏𝐫𝐨𝐦𝐨𝐭𝐞𝐝 𝐛𝐲 𝐑𝐮𝐩𝐚 𝐏𝐮𝐛𝐥𝐢𝐜𝐚𝐭𝐢𝐨𝐧𝐬. 𝐘𝐞𝐚𝐫 𝐨𝐟 𝐩𝐮𝐛𝐥𝐢𝐜𝐚𝐭𝐢𝐨𝐧: 𝟐𝟎𝟐𝟒. 𝐂𝐨𝐩𝐲𝐫𝐢𝐠𝐡𝐭: 𝐀𝐣𝐚𝐲 𝐁𝐢𝐬𝐚𝐫𝐢𝐚
𝐁𝐲: 𝐏𝐫𝐨𝐟. 𝐍𝐞𝐞𝐥𝐚𝐦 𝐌𝐚𝐡𝐚𝐣𝐚𝐧 𝐒𝐢𝐧𝐠𝐡
• 1947 का भारत-पाकिस्तान बटवारा, यानी भारत की आज़ादी व भारत के विभाजन की गाथा गहरे घावों से भरी हुई है। 06 फरवरी, 2024 को, मैं अजय बिसारिया के इंटरैक्टिव, परिचर्चा सम्मेलन में भाग लेने गई, जहां उन्होंने धैर्यपूर्वक अपनी पुस्तक, 'एंगर मैनेजमेंट: दी ट्रबल्ड डिप्लोमैटिक रिलेशनशिप बिटवीन इंडिया एंड पाकिस्तान' के विषय को रेखांकित किया। उल्लेखनीय है कि 07 अगस्त 2019 को, पाकिस्तान में भारतीय उच्चायुक्त, अजय बिसारिया को इस्लामाबाद से निष्कासित कर दिया गया था। उनके निष्कासन ने भारत और पाकिस्तान के बीच, कभी न ख़त्म होने वाले विषाक्त, राजनीतिक संबंधों में एक और गिरावट दर्ज की थी। लेखक एक पेशेवर राजनयिक (diplomat) हैं। उन्होंने यह पुस्तक अपने माता-पिता को समर्पित की है; श्रीमती प्रियंवदा व श्री जगत नारायण बिसारिया, जो कि 1947 विभाजन के गवाह थे, और उनके पास पहले व बाद के समय की बताने के लिए कई कहानियाँ थीं ! लेखक स्वयं अंतरराष्ट्रीय मामलों पर एक सशक्त टिप्पणीकार हैं और 'ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के वरिष्ठ रिसर्च फैलो हैैं।
अजय बिसारिया 1987 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुए और पैंतीस साल के करियर में, उन्होंने भारत के कुछ प्रमुख आर्थिक व सुरक्षा संबंधों का नेतृत्व किया। 2017 से 2020 तक, लेखक पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त थे। वे कैनेडा, पोलैंड, बर्लिन, मॉस्को और लिथुआनिया के राजदूत रह चुके हैं। अजय बिसारिया ने वाशिंगटन डी.सी. में विश्व बैंक में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। वे 1999 से 2004 तक प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सलाहकार थे। वे प्रधानमंत्री कार्यालय में कार्यरत रहे। यह पाकिस्तान के प्रधान मंत्री नवाज़ शरीफ द्वारा प्रधान मंत्री वाजपेयी को 'गले लगाना' व उसके बाद कारगिल युद्ध का समय था। अजय बिसारिया, सेंट स्टीफंस कॉलेज से अर्थशास्त्र ऑनर्स में स्नातक हैं व उन्होंने कलकत्ता से आई.आई.एम. और प्रिंसटन विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री प्राप्त की है। इतने विशाल राजनयिक अनुभव व भारत और पाकिस्तान के बीच महत्वपूर्ण घटनाक्रमों की जानकारी रखने के साथ, यह पुस्तक भारत-पाक संबंधों के कई उतार-चढ़ावों के प्रति एक निश्चित अंतर्दृष्टि है।
ज़ुल्फिकार अली भुट्टू और प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के बीच 'शिमला समझौता' शांतिपूर्ण, पड़ोस के लिए मार्गदर्शक था। हालाँकि क्या इन पहलुओं को वास्तव में अमल में लाया गया? दिलचस्प बात यह है कि जब लेखक प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सलाहकार थे, तभी प्रधानमंत्री वाजपेयी ने कहा था, "आप अपने दोस्त बदल सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं"। दक्षिण एशिया में सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व के उस कूटनीतिक रिश्ते को ध्यान में रखते हुए, लेखक ने भारत और पाकिस्तान के बीच शांति प्रयास जारी रखने की वकालत की है लेकिन, "आतंकवाद को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा"! पी.एम. अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा, "हम जंग नहीं होनेें देंगें; तीन बार लड़ चुके हैं, कितना असहनीय महंगा सौदा है यह"! अजय बिसारिया की क़िताब में पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के ये शब्द अभी भी गूंजते हैं। 1999 को फ़रवरी की शाम प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी वाघा बार्डर पहुंचे। दिल्ली-लाहौर बस सेवा के उद्घाटन पर उन्हें 19 तोपों की सलामी दी गई व जनता और पाकिस्तान के शीर्ष नेतृत्व की भागीदारी ने उनका स्वागत किया गया।
तब उन्हें यह नहीं पता था कि उनके ये ऐतिहासिक पहल कुछ ही महीनों के भीतर, भारत और पाकिस्तान में एक और जंग, 'कारगिल युद्ध' में उलझ जाएगें। राजदूत अजय बिसारिया लिखते हैं, "भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत यह है कि हमने हमेशा देश को राजनीति से ऊपर रखा है"। पुस्तक का अध्याय 27, जिसका शीर्षक 'सांपों का बदला' है; सेना के तख्तापलट और सेना की सर्वोच्चता से संबंधित है, जिसने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया है। बेनज़ीर भुट्टो, पाकिस्तान के चुनाव में भाग लेने के लिए लंदन से स्वदेश लौटीं।
27 दिसंबर 2007 की शाम को बेनज़ीर भुट्टो ने रावलपिंडी के लियाकत बाग में अपना शानदार भाषण समाप्त करने के उपरांत, टोयोटा क्रूज़र की पिछली सीट पर चढ़ने के उपरांत, अपनी गर्दन को सनरूफ हैच से बाहर निकाला। यह बेनज़ीर का शानदार वापसी अभियान था व परवेज़ मुशर्रफ़ युग के अंत का समय भी ! अजय बिसारिया की पुस्तक रोंगटे खड़े कर देने वाली, इस घटना का विवरण प्रस्तुत करती है, जब 15 साल के लड़के 'बिलाल', जिसने खुद को उड़ाने से पहले, बेनज़ीर भुट्टो को तीन गोलियां मारी थीं।आई. एस. आई. (ISI) के लेफ्टिनेंट जनरल नदीम ताज ने बेनज़ीर को उनकी हत्या से पंद्रह घंटे पहले, सुरक्षा में शंका की विशेष जानकारी दी थी। इससे पहले ज़िया-उल-हक ने तीन दशक पहले, ज़ुलफिकार अली भुट्टो को सूली पर चढ़ाया था। भुट्टो परिवार में निर्मम हत्यााएं हुुईं थीं। अपने पिता का दर्दनाक अंत बेनज़र के लिए घाव के समान था। पिता- बेटी के खूनी, दर्दनाक अंत ने राजनीति में हड़कंप मचा दी। भुट्टो परिवार के भाग्य में ही खूनी हत्या थी! बेनज़ीर की मृत्यु के बाद भारत में दुःख और सहानुभूति का विस्फोट देखा गया।
राजीव गांधी व बेनज़ीर की नियति ऐसी ही थी। भारत की तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ने बेनज़ीर भुट्टो की हत्या को "न केवल पाकिस्तान के लिए बल्कि हमारे पूरे क्षेत्र के लिए एक त्रासदी" कहा। फ़िर नए नेतृत्व आरंभ हुए। पीएम वाजपेयी ने धरती पर स्वर्ग, 'जम्मू कश्मीर' के लिए, "जम्हूरियत, कश्मीरियत और इंसानियत" की बात कही। अब कश्मीर से अनुच्छेद 370 व 35-ए खत्म होने पर पाकिस्तान में घमासान मचा हुआ है।
पृष्ठ 447 पर, अजय बिसारिया, भारत के गृह मंत्री अमित शाह को उद्धृत करते हैं, जिन्होंने संसद में कहा था, "अनुच्छेद 370 को रद्द करने का मतलब कश्मीर में रक्तपात और हिंसा को समाप्त करना था। कश्मीर में 41,000 लोगों की जान चली गई, क्या हमें ऐसा करना चाहिए? क्या यथास्थिति बदलने से पहले 10,000 और जानें खोने की प्रतीक्षा करें"? पीएम नरेंद्र मोदी और अपदस्थ पीएम इमरान खान के बीच सौहार्द्र से उम्मीद थी कि कुछ समाधान निकलेंगें। आतंकवादी, जैश-ए-मोहम्मद, अभी भी रिमोट कंट्रोल कर रहे हैं। भारत में भारी जनभावना यह है कि पाकिस्तान के साथ तब तक कोई सार्थक बातचीत नहीं हो सकती जब तक वह अपनी विदेश नीति के में 'आतंकवाद का उपयोग बंद नहीं कर देता'। लेखक पाठकों को राजनाायकों के अदृश्य पहलुओं की एक झलक देते हैं। राजनायकों पर जासूसी, अदृश्य डिप्लोमैटिक गतिविधियों से लेकर,
कभी-कभी पाकिस्तानी लोगों से मिलने वाली गर्मजोशी और दोस्ती को भी उल्लेख किया गया है। एशियाई परिपेक्ष्य में भी भारत व पाकिस्तान के संबंधों में सुधार होना चाहिए। यह पुस्तक 1948 के आक्रमण का विवरण देती है, जिसे प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू की त्वरित कार्रवाई से रोक दिया गया था। 1965 का भारत-पाक युद्ध, जिसे प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने कुशलतापूर्वक संभाला था, 1971 का युद्ध, प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के समय जीता गया था। 1999 के कारगिल युद्ध की शानदार जीत से प्रधानमंत्री वाजपेयी का निर्णायक नेतृत्व साबित हुआ था। तब उन्हें यह नहीं पता था कि उनकी ऐतिहासिक पहल के कुछ ही महीनों के भीतर, भारत और पाकिस्तान एक और जंग, कारगिल युद्ध में उलझ जाएंगें। राजदूत अजय बिसारिया लिखते हैं, "भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत यह है कि हमने हमेशा देश को राजनीति से ऊपर रखा है"। पुस्तक का अध्याय 27, जिसका शीर्षक 'सांपों का बदला' है; ( Revenge Of The Snakes), सेना के तख्तापलट और सेना की सर्वोच्चता से संबंधित है, जिसने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया है। बेनज़ीर भुट्टो पाकिस्तान के चुनाव में भाग लेने के लिए लंदन से लौटीं। "बेनजीर भुट्टो अपनी गर्दन को सनरूफ हैच से बाहर निकालने के लिए टोयोटा क्रूजर की पिछली सीट पर चढ़ गईं। 27 दिसंबर 2007 की शाम थी, उन्होंने रावलपिंडी के लियाकत बाग में अपना भाषण समाप्त किया था। यह वापसी अभियान, मुशर्रफ युग का अंत था। लेखक ने 15 साल के लड़के 'बिलाल' द्वारा हत्या का रोंगटे खड़े कर देने वाला विवरण दिया है, जिसने खुद को उड़ाने से पहले तीन गोलियां मारी थीं। डी.जी. आई.एस.आई. के लेफ्टिनेंट जनरल नदीम ताज ने बेनज़ीर को उनकी हत्या से पंद्रह घंटे पहले विशेष जानकारी दी थी। इससे पहले ज़िया-उल-हक ने तीन दशक पहले बेनज़ीर के पिता को मिटा दिया था! भुट्टो परिवार का खूनी भाग्य था। बेनज़ीर की मृत्यु के बाद भारत में दुःख और सहानुभूति का सहज विस्फोट देखा गया। राजीव गांधी और बेनज़ीर की नियति भी ऐसी ही थी। भारत की तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ने बेनज़ीर भुट्टो की हत्या को "न केवल पाकिस्तान के लिए बल्कि हमारे पूरे क्षेत्र के लिए एक त्रासदी" कहा।
पीएम वाजपेयी ने धरती पर स्वर्ग के लिए, "जम्हूरियत, कश्मीरियत और इंसानियत" पर बात की। कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए खत्म होने पर पाकिस्तान में अभी घमासान मचा हुआ है। पृष्ठ 447 पर, अजय बिसारिया भारत के गृह मंत्री अमित शाह को उद्धृत करते हैं, जिन्होंने संसद में कहा था, "अनुच्छेद 370 को रद्द करने का मतलब कश्मीर में रक्तपात और हिंसा को समाप्त करना था। कश्मीर में 41,000 लोगों की जान चली गई, क्या हमें ऐसा करना चाहिए यथास्थिति बदलने से पहले 10,000 और खोने की प्रतीक्षा करें"? पीएम नरेंद्र मोदी और अपदस्थ पीएम इमरान खान के बीच सौहार्द्र से उम्मीद थी कि कुछ समाधान निकलेंगें। तालिबानी आतंकवादी, जैश-ए-मोहम्मद, अभी भी रिमोट कंट्रोल कर रहा है। भारत में भारी जनभावना यह है कि पाकिस्तान के साथ तब तक कोई सार्थक बातचीत नहीं हो सकती जब तक वह अपनी विदेश नीति में आतंकवाद का उपयोग बंद नहीं कर देता। लेखक अजय बिसारिया, पाठकों को राजनयिकों की अदृश्य पहलुओं की एक झलक देते हैं, जब रिश्ते तनावपूर्ण होते हैं व बातचीत में टाल-मटोल की जाती है। लेखक को उम्मीद है कि झगड़ालूपन, रक्तपात और सीमा पार आतंकवाद ने भारत-पाक संबंधों को ख़राब कर दिया है, जिसे सामान्य स्थिति में नहीं पाया गया। यह पुस्तक 1948 के आक्रमण का विवरण देती है, जिसे प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू की त्वरित कार्रवाई से रोक दिया गया था। विवरित है कि 1965 का भारत-पाक युद्ध, जिसे प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने कुशलतापूर्वक संभाला था, 1971 का युद्ध, प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के समय जीता गया था।शानदार जीत और 1999 के कारगिल युद्ध के साथ, प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निर्णायक नेतृत्व ने विफल कर दिया था। पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा मुंबई पर आतंकवादी हमले, पुलवामा और बालासोर में आतंकवाद के घिनौने चेहरे का पुनरुत्थान, 'जैश-ए-मोहम्मद' द्वारा भारत की संसद पर आतंकवादी हमला, पंजाब में उग्रवाद का ख़तरा, पाकिस्तान का विभाजन, बांग्लादेश का निर्माण, इंदिरा - मुजीब उर रहमान सौहार्द, राजीव गांधी-बेनज़ीर भुट्टू की मुलाकात, का उल्लेख; 'एंगर मैनेजमेंट: दी ट्रबल्ड डिप्लोमैटिक रिलेशनशिप बिटवीन इंडिया एंड पाकिस्तान' में किया गया है।
फोकस पीएम वाजपेयी और जनरल परवेज़ मुशर्रफ की 'आगरा सम्मिट शांति वार्ता' पर भी रहा, हालांकि पाकिस्तानी सेना ने इस पर पर्दा डाल दिया था। 'एंगर मैनेजमेंट' में नवाज़ शरीफ की बेटी मरियम शरीफ की शादी में शामिल होने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी की 'आउट ऑफ बॉक्स' कूटनीतिक शांति-पहल को कवर करती है। दरअसल पीएम नरेंद्र मोदी के पहले शपथ समारोह में जब पीएम नवाज़ शरीफ शामिल होने पहुंचे तो ऐसा लगा कि शांति के सितारे जगमगा रहे हैं। अजय बिसारिया भारत और पाकिस्तान के बीच।सामंजस्यपूर्ण, सह-अस्तित्व के लिए एक शांति योजना पेश करते हैं, ताकि दक्षिण एशियाई क्षेत्र में स्थायी शांति स्थापित की जा सके। युद्धों और उग्रवाद से ग्रस्त दुनिया में, जहां धार्मिक ध्रुवीकरण और आर्थिक-सामरिक हित प्रमुख हैं, 'एंगर मैनेजमेंट: दी ट्रबलड डिप्लोमैटिक रिलेशनशिप बिटवीन इंडिया एंड पाकिस्तान', वास्तव में वैश्विक, रणनीतिक सहयोग के पाठकों के लिए एक 'ए+' पुस्तक है व सहिष्णुता का मार्गदर्शी भी। इस बात को ध्यान में रखते हुए कि राष्ट्रों के समुदाय की क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना भविष्य की आधारशिला है। भारत और पाकिस्तान में आगामी आम-चुनाव, क्षेत्र में शांति की उम्मीद जागृत कर सकते हैं। आखिरी पैराग्राफ में, लेखक अजय बिसारिया लिखते हैं, "युद्ध, आतंकवाद व कश्मीर, कूटनीति, कलह व शांति पर सभी बहसों के बीच, मैंने खुद को उन कदमों की याद दिलाई है, जो मेरी माँ और उनके परिवार ने दशकों पहले दक्षिण एशियाई क्षेत्र के लिए उठाए थे। मुझे आश्चर्य है कि क्या भविष्य की सीमाएँ अधिक खुली और स्वागतयोग्य हो सकती हैं"?
वरिष्ठ राजनयिक अजय बिसारिया द्वारा प्रथम दृष्टा लेखांकन
अजय बिसारिया ने संवेदनशीलता, सटीकता और प्रत्यक्ष विवरण के साथ यह पुस्तक लिखी है। यह उम्मीद करते हुए कि, "आतंकवादियों और रक्तपात के बिना सीमाओं को एक बार फिर से खोला जा सकता है। यदि नई पीढ़ी अतीत के त्रुटिपूर्ण विकल्पों को अस्वीकार करती है, तो शांतिपूर्ण भविष्य संभव प्रतीत होता है"। पुस्तक की समीक्षा को पढ़ते और लिखते समय, लेखिका अपनी यादों में खो गईं क्योंकि उनके माता-पिता ने भी भारत के विभाजन की भयावहता को झेला था। 'कश्मीर की बेटी' होने के नाते, लेखिका, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का मार्ग-दर्शन देने के लिए अजय बिसारिया की सराहना करतीं हैं। भारत और पाकिस्तान के अध्ययन के लिए, छात्रों, विदेश नीति विशेषज्ञों, आकांक्षी राजनयिकों, भारत-पकिस्तान के नीति निर्माताओं के लिए यह पुस्तक अवश्य पढ़ी जानी चाहिए। यह उत्कृष्ट पुस्तक है जिसमें इतिहास के अनेक पन्नों का कलेक्शन है, जिसमें पचहत्तर वर्षों के पाकिस्तान के साथ भारत के संबंधों की विस्तृत जानकारी दी गई है। अजय बिसारिया की यह पुस्तक वास्तव में क्षेत्रीय शांति के लिए एक परिचायक परियोजना स्वरूप है।
अजय बिसारिया ने संवेदनशीलता, सटीकता और प्रत्यक्ष विवरण के साथ यह पुस्तक लिखी है। यह उम्मीद करते हुए कि, "आतंकवादियों और रक्तपात के बिना सीमाओं को एक बार फिर से खोला जा सकता है। यदि नई पीढ़ी अतीत के त्रुटिपूर्ण विकल्पों को अस्वीकार करती है, तो शांतिपूर्ण भविष्य संभव प्रतीत होता है"। पुस्तक की समीक्षा को पढ़ते और लिखते समय, लेखिका अपनी यादों में खो गईं क्योंकि उनके माता-पिता ने भी भारत के विभाजन की भयावहता को झेला था। 'कश्मीर की बेटी' होने के नाते, लेखिका, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का मार्ग-दर्शन देने के लिए अजय बिसारिया की सराहना करतीं हैं। भारत और पाकिस्तान के अध्ययन के लिए, छात्रों, विदेश नीति विशेषज्ञों, आकांक्षी राजनयिकों, भारत-पकिस्तान के नीति निर्माताओं के लिए यह पुस्तक अवश्य पढ़ी जानी चाहिए। यह उत्कृष्ट पुस्तक है जिसमें इतिहास के अनेक पन्नों का कलेक्शन है, जिसमें पचहत्तर वर्षों के पाकिस्तान के साथ भारत के संबंधों की विस्तृत जानकारी दी गई है। अजय बिसारिया की यह पुस्तक वास्तव में क्षेत्रीय शांति के लिए एक परिचायक परियोजना स्वरूप है।
• प्रो. नीलम महाजन सिंह •
(वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक समीक्षक, दूरदर्शन व्यक्तित्व, सॉलिसिटर फॉर ह्यूमन राइट्स संरक्षण व परोपकारक)
𝐏𝐫𝐨𝐟. 𝐍𝐞𝐞𝐥𝐚𝐦 𝐌𝐚𝐡𝐚𝐣𝐚𝐧 𝐒𝐢𝐧𝐠𝐡
(𝐒𝐫. 𝐉𝐨𝐮𝐫𝐧𝐚𝐥𝐢𝐬𝐭, 𝐀𝐮𝐭𝐡𝐨𝐫, 𝐃𝐨𝐨𝐫𝐝𝐚𝐫𝐬𝐡𝐚𝐧 𝐏𝐞𝐫𝐬𝐨𝐧𝐚𝐥𝐢𝐭𝐲, 𝐒𝐜𝐡𝐨𝐥𝐚𝐫 𝐨𝐟 𝐈𝐧𝐭𝐞𝐫𝐧𝐚𝐭𝐢𝐨𝐧𝐚𝐥 𝐒𝐭𝐫𝐚𝐭𝐞𝐠𝐢𝐜 𝐀𝐟𝐟𝐚𝐢𝐫𝐬, 𝐒𝐨𝐥𝐢𝐜𝐢𝐭𝐨𝐫 𝐟𝐨𝐫 𝐇𝐮𝐦𝐚𝐧 𝐑𝐢𝐠𝐡𝐭𝐬 𝐏𝐫𝐨𝐭𝐞𝐜𝐭𝐢𝐨𝐧 𝐚𝐧𝐝 𝐏𝐡𝐢𝐥𝐚𝐧𝐭𝐡𝐫𝐨𝐩𝐢𝐬𝐭)
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