नवीन आईपीसी, सीआरपीसी एविडेंस कानून; औपनिवेशिक गुलामी का अंत
प्रो: नीलम महाजन सिंह
• ब्रिटानिया साम्राज्यवाद ने विश्व के विभिन्न देशों को, गुलाम बना कर उनके संसाधनों की 200 वर्षों तक खूब लूटपाट की। एक ऐसा समय था, जब ब्रिटानिया का साम्राज्यवाद परे विश्व में स्थापित था। ऐसा माना जाता था 'ब्रिटानिया के साम्राज्यवादी देशों में सूर्यास्त ही नहीं होता'। अंग्रेजों के बनाए पुराने आईपीसी, सीआरपीसी, व एविडेंस कानून; अब ब्रिटिश साम्राज्य से आज़दी के 77 वर्षो बाद बदलेंगें इन बिलों को शीघ्र पारित किया जाएगा। मॉब लिंचिंग, नाबालिग से रेप पर मौत की सज़ा, 'राजद्रोह अब देशद्रोह होगा'; आदि जैसे अनेक अनुच्छेद इसमें जोड़ दिए गए हैं। ग्रह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में आईपीसी, सीआरपीसी, व एविडेंस कानून; में बदलाव वाले बिल पेश किए हैं। अंग्रेज़ों के ज़माने के कानून अब खत्म होंगें। मानसून सेशन के आखिरी दिन 11 अगस्त को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 163 साल पुराने 3 मूलभूत कानूनों में बदलाव के बिल लोकसभा में पेश किए। सबसे बड़ा बदलाव राजद्रोह कानून को लेकर है, जिसे नए स्वरूप में लाया जाएगा। ये बिल इंडियन पीनल कोड (IPC), कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर (CrPC) व एविडेंस एक्ट हैं। अनेक धाराओं व प्रावधानों में अब बदलाव होगा। आईपीसी में 511 धाराएं हैं, जो अब 356 ही बचेंगीं। 175 धाराओं में परिवर्तन किया गया है। 8 नई धाराएं जोड़ी जाएंगीं, 22 धाराएं खत्म होंगीं। इसी तरह
सीआरपीसी में 533 धाराएं बचेंगीं। 160 धाराएं बदलेंगीं, 9 नई जुड़ेंगीं, 9 खत्म होंगीं। पूछताछ, इनक्वायरी से ट्रायल तक वीडियो कॉन्फ्रेंस से करने का प्रावधान होगा, जो कि पहले नहीं था। ये बहुत ही महत्त्वपूर्ण प्रावधान है। सबसे बड़ा बदलाव यह है कि अब ट्रायल कोर्ट को हर फैसला अधिकतम 3 साल में देना होगा। देश में 5 करोड़ केस पेंडिंग हैं। इनमें से 4.44 करोड़ केस ट्रायल कोर्ट में ही हैं। इसी तरह जिला अदालतों में जजों के 25,042 पदों में से 5,850 पद खाली हैं, जिनकी शीघ्र पूर्ति होने की संभावना है। तीनों बिलों को जांच के लिए संसदीय कमेटी के पास भेजा जाएगा। इसके बाद इन्हें लोकसभा व राज्यसभा में पारित किया जाएगा। हम पहले उन 3 कानूनों को समझें जिनमें बदलाव किये गये हैं। अब 'राजद्रोह' का कानून समाप्त होकर 'देशद्रोह' का प्रावधान किया गया है। 'राजद्रोह' ब्रिटिश काल का शब्द है जिसे हटाकर अब 'देशद्रोह' शब्द आएगा। धारा 150 के तहत राष्ट्र के खिलाफ कोई भी कृत्य, चाहे बोला हो या लिखा हो, या संकेत या तस्वीर या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से किया हो, तो 7 साल से उम्रकैद तक सजा संभव होगी। देश की एकता एवं संप्रभुता को खतरा पहुंचाना अपराध होगा। 'आतंकवाद' शब्द को भी परिभाषित किया गया है। अभी आईपीसी की धारा 124-ए में राजद्रोह के लिए 3 साल से उम्रकैद तक होती है। पहली बार छोटे-मोटे अपराधों (नशे में हंगामा, 5 हज़ार से कम की चोरी) के लिए 24 घंटे की सज़ा या एक हज़ार रु. जुर्माना या सामुदायिक सेवा करने की सज़ा हो सकती है। अभी ऐसे अपराधों पर जेल भेजा जाता है, जो अब समाप्त हो जाएगा। अमेरिका, ब्रिटेन आदि में ऐसे ही कानून हैं। 'मॉब लिन्चिंग' के लिये मौत की सज़ा का प्रावधान किया गया है। 5 या अधिक लोग; जाति, नस्ल या भाषा आधार पर हत्या करते हैं; तो न्यूनतम 7 साल या फांसी की सज़ा होगी। अब 180 दिन में चार्जशीट, ट्रायल के बाद 30 दिन में फैसला, पुलिस को 60 दिन में आरोप पत्र दाखिल करना होगा। कोर्ट इसे 90 दिन बढ़ा सकेगी। अधिकतम 180 दिन में जांच पूरी कर ट्रायल के लिए भेजनी होगी। ट्रायल के बाद कोर्ट को 30 दिन में फैसला देना होगा। फैसला एक सप्ताह के भीतर ऑनलाइन अपलोड करना होगा। 3 साल से कम सज़ा वाले मामलों में संक्षिप्त सुनवाई पर्याप्त होगी। इससे सेशन कोर्ट में 40% मुकदमे कम हो जाएंगे। सज़ा की दर 90% तक ले जाने का लक्ष्य है। सरकारें सज़ा में छूट का सियासी इस्तेमाल ना कर सकें, इसके लिए नया प्रावधान किया गया है। मौत की सज़ा, सिर्फ आजीवन कारावास और आजीवन कारावास को 7 साल तक सज़ा में बदला जा सकेगा। ये कानून सुनिश्चित करेंगें कि सियासी प्रभाव वाले लोग कानून से बच न सकें। सरकार पीड़ित को सुने बिना 7 साल कैद या अधिक सज़ा वाले केस वापस नहीं ले सकेगी। अब नागरिक देश में कहीं भी एफआईआर दर्ज करवा सकेंगे। इसमें संबंधित धाराएं भी जुड़ेंगीं। अब तक ज़ीरो एफआईआर में धाराएं नहीं जुड़ती थीं। 15 दिन में ज़ीरो एफआईआर, संबंधित थाने को भेजनी होगीं। हर ज़िले में पुलिस अधिकारी, गिरफ्तार लोगों के परिवार को प्रमाण पत्र देगा कि वे गिरफ्तार व्यक्ति के लिए ज़िम्मेदार हैं। जानकारी ऑनलाइन व व्यक्तिगत देनी होगी। शादी, नौकरी, प्रमोशन का प्रलोभन देकर या पहचान छिपाकर महिला का यौन शोषण, अब अपराध होगा। एफआईआर से फैसले तक सब ऑनलाइन, डिजिटल रिकॉर्ड्स को वैधता देने से लेकर, कोर्ट के फैसले तक पूरा सिस्टम डिजिटल व पेपरलेस होगा। 'सर्च व ज़ब्ती' की वीडियोग्राफी होगी। जांच, अनुसंधान फोरेंसिक विज्ञान पर आधारित होगी। 7 साल या अधिक की सज़ा वाले अपराधों में फोरेंसिक टीम मौके पर ज़रूर जाएगीं। सभी अदालतें 2027 तक कंप्यूटरीकृत होंगीं। ये बदलाव अति आवश्यक हैं। चुनाव में मतदाता को रिश्वत देने पर एक साल की कैद का प्रावधान दिया गया है। पहली बार अपराध करने वाले व्यक्ति को कुल कारावास का एक-तिहाई समय जेल में बिताने पर ज़मानत दे दी जाएगी। 'फरार' घोषित अपराधी के बगैर भी मुकदमा चल सकेगा। इससे जघन्य अपराधियों के ट्रायल संभव होगें। सिविल सर्वेंट्स पर मुकदमा चलाने के लिए 120 दिन के भीतर अनुमति देनी होगी। कुछ विशेषज्ञों की राय महत्वपूर्ण है। इन कानूनों में बदलाव क्यों ज़रूरी था? आज़ादी के 77 वर्षों बाद व संविधान लागू होने के बावजूद अंग्रेजों के साम्राज्यवादी, दो सदी पुराने कानूनों से आपराधिक न्याय प्रणाली चल रही है। इसे 'औपनिवेशिक गुलामी' माना जा रहा था। आर्थिक मामलों से जुड़े कई मामलों को सरकार ने आपराधिक कानून के दायरे से बाहर रखने के लिए 'जन विश्वास बिल' पारित किया है। ऐसे में यह बदलाव के लिए आज़ादी के 77वें वर्ष में बिल पेश होना प्रशंसनीय है।अभी पांच करोड़ से ज्यादा केस अदालतों में लंबित हैं। ज़िला व तालुका स्तर पर लम्बित 4.44 करोड़ में से 3.33 करोड़ केस फौजदारी-क्रिमिनल मामलों के हैं। छोटे मामलों में; सामुदायिक सेवा जैसे दंड देने के नए प्रावधानों से मुकदमों की संख्या में कमी आयेगी। ये कानून कब और कैसे लागू होंगें? तीनों बिलों को संसद की स्थायी समिति को भेजा गया है। राजद्रोह जैसे प्रावधान की सुप्रीम कोर्ट, बहुत आलोचना कर चुकी है। नरेंद मोदी सरकार यह चाहेगी तो इस पर सहमति बन सकती है। आईपीसी व दूसरे कानूनों की धाराओं के क्रम में बदलाव होने से वकीलों और जजों में कन्फ्यूजन न बढ़े, इसके लिए विशेष वर्कशॉप व ट्रेनिंग भी दी जायेगी। ऐसे में कुछ आलोचक प्रस्तावित कानूनों को 'पुरानी फाइल पर नया कवर' बता रहे हैं। गलत मुक़दमे व पुलिस ज़्यादती रोकने के प्रभावी व व्यावहारिक प्रावधान भी होने चाहिए। मुकदमों के जल्द फैसले के लिए भी स्पष्ट रोड मैप नहीं है। नए क़ानून के बाद पुलिस व न्यायपालिका में और मैनपॉवर की ज़रूरत होगी व इन्फ्रास्ट्रक्चर भी बढ़ाना होगा। मोदी सरकार के दावों के अनुसार, इन बिलों को पेश करने से पहले व्यापक रायशुमारी की गई है।संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार कानून-व्यवस्था व पुलिस; राज्यों का विषय है। समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग के माध्यम से राष्ट्रीय बहस पहले से ही हो रही है, इसलिए आपराधिक कानूनों में बदलाव से पहले, राज्यों से परामर्श के साथ देश में सार्थक बहस ज़रूरी है। सरकार का तथ्य है कि 4 साल की चर्चा के बाद ही ये बदलाव हुए हैं। 18 राज्यों, 6 केंद्र शासित प्रदेशों, सुप्रीम कोर्ट, 22 हाई कोर्ट, न्यायिक संस्थाओं, 142 सांसदों और 270 विधायकों के अलावा जनता ने भी इन विधेयकों को लेकर सुझाव दिए हैं। 158 बैठकों के बाद सरकार ने यह बिल को पेश किया है। इन बदलावों के लिए पहली बैठक सितंबर 2019 में संसद भवन के पुस्तकालाय के रूम नंबर जी-74 में हुई थी। सारांशार्थ यह कहना उचित होगा कि प्रजातंत्र में सिविल या हौजदारी कानून, जनता के अधिकारों व 'सिविल चार्टर' के रूप मे होना चाहिए। यद्यपि कि समय-समय पर आईपीसी, सीआरपीसी, एविडेंस कानून में कुछ संशोधन हुए हैं, परन्तु अभी तक ये उपनिवेशवादी कानून, मानवाधिकारों का हनन व शोषण कर रहे थे। ये नव समावेशी कानून, आज़ादी के अमृत-काल में, संविधान अनुसार, मौलिक अधिकारों के संरक्षण के लिए प्रशंसनीय व चुनौतिपूर्ण निर्णय है।
प्रो: नीलम महाजन सिंह
(वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक, दूरदर्शन व्यक्तित्व, सॉलिसिटर फॉर ह्यूमन राइट्स संरक्षण, संविधान विध व परोपकारक)
singhnofficial@gmail.com
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