प्रजातंत्र में धार्मिक जातिवाद सामाजिक-आर्थिक ध्रुवीकरण का प्रतीक • प्रो. नीलम महाजन सिंह •

             हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई हम सब हैं भाई भाई

प्रजातंत्र में धार्मिक जातिवाद सामाजिक-आर्थिक ध्रुवीकरण का प्रतीक 
• प्रो. नीलम महाजन सिंह •
☆ गत महिनों में सामाजिक ध्रुवीकरण बढ़ता ही जा रहा है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के लिए, भारत को यदि विश्व गुरु बनना है तो 'चैरिटी बिगेनज़ एट होम' पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। तभी भारत विश्व गुरु बनने का सपना पूरा करने का प्रयास करेगा। 2022 में, लाल किले के प्रांगण से स्वतंत्रता दिवस संबोधन में पीएम नरेंद्र मोदी ने नारी व मातृभूमि शक्ति की सुरक्षा व सशक्तिकरण का अहवान किया था। 
पीएम नरेद्र मोदी ने कहा, "मैं एक पीड़ा जाहिर करना चाहता हूँ। मैं जानता हूँ कि शायद ये लाल किले का विषय नहीं हो सकता। मेरे भीतर का दर्द कहाँ कहूं। किसी न किसी कारण से हमारे अंदर एक ऐसी विकृति आई है, हमारी बोल चाल, हमारे शब्दों में; हम नारी का अपमान करते हैं। क्या हम स्वभाव से, संस्कार से रोजमर्रा की जिंदगी में नारी को अपमानित करने वाली हर बात से मुक्ति का संकल्प ले सकते हैं। नारी का गौरव राष्ट्र के सपने पूरे करने में बहुत बड़ी पूंजी है। ये सामर्थ्य मैं देख रहा हूं"।अवश्यंभावी जिस देश में महिलाओं का तिरस्कार हो वहाँ कभी भी सामाजिक व अर्थिक उत्थान नहीं होगा। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' का सार्थक अहवान किया। लेकिन यह धरातल पर कितना सुचारू है, यह सभी को सोचना होगा ! 
भारत के संविधान में धर्म या पंथ निरपेक्षता को स्पष्टता से अंकित किया गया है। संविधान में धर्म निरपेक्षता (पंथ निरपेक्षता) का सिद्धांत बयालीसवें संविधान संशोधन के माध्यम से 1976-77 में अपनाया गया। यह तो शुरू से ही भारत के संविधान की आत्मा का मूलभूत सिद्धांत रहा है। संविधान सभा में कई मौकों पर यह स्पष्ट किया गया था कि भारत एक धर्म निरपेक्ष देश होगा। अब हम उस स्थिति में हैं, जब हम सबको यह संदेश देना होगा कि भारत में सभी लोग किसी भी धर्म को मान सकते हैं। भारत की शान तो, एकता में विविधता में ही है। अब समय आ गया है कि किसी भी राजनीतिक दल के विभाजनकारी ब्यानों को खारिज करना चाहिए। धर्म व जाति को राजनीति में घसीटे जाने की प्रवृति पर रोक लगा दी जानी चाहिए। धार्मिक व सामाजिक जाति-व्यवस्था संरचना हमेशा से भारतीय राजनीतिक व्यवस्था का हिस्सा रही है। हर देश का एक धार्मिक इतिहास होता है, जिसे नकारा नहीं जा सकता। भारत का भी है। भारत पर करीब 600 वर्षों तक मुस्लिम शासकों का राज रहा तो करीब 200 वर्षों तक अंग्रेजों का शासन रहा। दोनों ने भारत को धार्मिक रूप से प्रभावित किया। यह हमारा अतीत है। हमें भविष्य की ओर ध्यानाकर्षित करना है। 1947 के बाद से पहले का एक अलग भारत था। अब वह स्वतंत्र है, उसका अपना संविधान है, वह धर्मनिरपेक्ष है, सभी नागरिक एक समान हैं। पिछले 76 सालों से एक संप्रभु आज़ाद भारत है। यह हमारा वर्तमान है। लेकिन आज आज़ाद भारत में भी 'कुलीनतंत्र या ओलिगारकी' का स्याह साया चिंता पैदा करता है। आम तौर पर एक राज्य जो एक विशेष धर्म पर चलता है, उसे 'ओलिगारकी' के रूप में जाना जाता है। क्या भारत की मौजूदा राजनीति इसी राह पर है? 'हिंदुत्व बनाम हिंदू' या हमारा बनाम उसका हिंदुत्व पर बहस का क्या मतलब है? जब भारत अपने संविधान से संचालित है, जिसमें धर्म व जाति के कोई मायने नहीं हैं। अब कुलीनतंत्र स्टाइल की राजनीति देखने को मिल रही है। किसी भी प्रदेश के विकास, शासन-प्रशासन, शिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस व्यवस्स्था आदि एजेंडे से भटकाव नहीं होना चाहिए। आज रुद्राक्ष धारण करना, भगवे वस्त्र पहनना, चंदन का तिलक लगाना, गंगा स्नान करना आदि का इस्तेमाल, राजनीतिक उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है। ये सभी ओलीगारकी के उदाहरण हैं। कांग्रेस कहती है; ‘राहुल गांधी जनेऊधारी हिन्दू हैं।’ कमाल है! राहुल का कैलाश मंदिर, पद्मनाभस्वामी मंदिर, का चित्रण सभी हिंदू वोटों को आकर्षित करने के लिए महत्वपूर्ण है। यहां तक ​​कि इंदिरा गांधी ने भी प्रसिद्ध रुद्राक्ष की माला पहनी थी। रोमन कैथोलिक; सोनिया मियानो, राजीव गांधी से विवाह उपरांत, सोनिया गांधी बन हिंदू  होने का दावा करती हैं। सोनिया गांधी को अनेक मंदिरों में पूजा-अर्चना में दिखाया गया है। प्रियंका गांधी वाड्रा, हरिद्वार जाकर गंगा में डुबकी लगाती हैं और अनेक चित्रों के प्रकाशन से आश्वस्त करवाना चाहती हैं कि 'हम भी हिंदू हैं'।             राहुल गांधी अनेक मंदिरों में जलाभिषेक करते हुए 
इस कोशिश में कांग्रेस भाजपा से एक कदम आगे बढ़ी हुई है। शायद इसलिए राहुल गांधी 'हिंदुत्व' की परिभाषा अपने हिसाब से करते हैं। वे अपने हिंदुत्व को भाजपा व आरएसएस के हिंदुत्व से अलग मानते हैं। इस्लामिक देश, जो होली-पुज्य कुरान के कानूनों द्वारा शासित हैं, वे भी ओलिगारकी हैं। सऊदी अरब, यूएई, कुवैत, जोर्डन, पाकिस्तान, मिश्र, आदि उदाहरण हैं। एक तरफ पाकिस्तान लोकतंत्र के बारे में दावा करता है और दूसरी तरफ इस्लामी कानूनों का पालन करता है। अधिकांश मुस्लिम देशों को 'इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ...' ; कहा जाता है, तो ज़ाहिर है कि वे एक 'ओलिगारकी' हैं। “तुम्हारे लिए तुम्हारा धर्म है; मेरे लिए मेरा धर्म है,” सूरह अल-काफिरुन, कुरान का यह 109वां सूरह है। इसमें एक अपील है, जो अल्लाह के दूत पैगंबर साहब (पीबीयूएच) को बतानी थी। सूरह अल-काफिरुन का मुख्य विषय एकेश्वरवाद की पुष्टि और अविश्वास का त्याग है। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम भी धर्म आधारित है तथा वे मुसलामनों पर ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करते हैं। बसपा, सपा को भी, पिछड़े, अनुसूचित जनजाति विशेष का समर्थन है। हाल ही में राजनीति में धर्म के मिश्रण की बहुत बातें हुई हैं। 
हिंदू धर्म व हिंदुत्व को राजनेताओं द्वारा क्यों परिभाषित किया जा रहा है? 'हिंदुत्व विचारधारा का राजनीतिक अर्थ है, जबकि हिंदू धर्म का धार्मिक अर्थ है'। दोनों के बीच में सूक्ष्म रेखा है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक विट्रियोलिक बयान दिया, ‘भारत में अल्पसंख्यक धर्मों; इस्लाम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी आदि पर हिंदुत्व के एजेंडे का उपयोग भारतीय जनता पार्टी व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ करते हैं।’ यदि हम प्राचीन भारत के इतिहास को लेते हैं, तो वैदिक प्रणालियों का पालन किया गया था। अगर हम सत युग, द्वापर युग व त्रेता युग की बात करें, तो ज़ाहिर है वे सभी हिंदू राज्य थे! प्राचीन भारत के विघटन और 'दिल्ली सल्तनत' के बाद, भारत में मुगलों के आगमन के साथ, 'इस्लाम ने प्रमुखता ली'। पूरे भारत में मस्जिदों और मुद्रसों का निर्माण किया गया। मुस्लिम शासकों ने क्षेत्रीय आबादी को अपनी सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था में समायोजित करने का प्रयास किया। अकबर का 'दीन-ए- इलाही', इस का उदाहरण है। 
अंग्रेज़ों ने भारत में ईसाई मिशनरीयों को बढ़ावा दिया। इस तरह सभी शासक धर्म व जाति का प्रयोग अपनी राजनीति के लिए करते रहे हैं। इसलिये अकेले भाजपा पर हमला क्यों हो रहा है? फिर ऐसा क्यों है कि धर्म व व्यक्तिगत आस्था के मुद्दे चुनाव से ठीक पहले सभी राजनेताओं द्वारा प्रमुखता से उठाए जाते हैं? क्या हिंदुत्व एक धर्म, विचारधारा या वोट आकर्षित करने का माध्यम है? क्या हिंदुत्व, 'हिंदू राष्ट्रवाद' का प्रमुख स्वरुप है? एक विचार के रूप में, 'हिंदुत्व' शब्द को विनायक दामोदर सावरकर ने 1923 में व्यक्त किया था। अब इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा समर्थित किया जाता है। एक हिंदुत्व विचार की पार्टी, शिवसेना से कांग्रेस का महाराष्ट्र में गठबंधन हुआ था, 'आगाढ़ी सरकार'। आज के राजनेताओं ने हिंदुत्व के मुस्लिम विरोधी पहलुओं को अधिक प्रचारित करने का प्रयास किया है व भारतीय पहचान की समावेशिता पर ज़ोर दिया है। भारत की सांस्कृतिक पहचान से, हिंदुत्व को समस्त भारतीयों से जोड़कर देखा जा रहा है। 
हिंदुत्व के समर्थकों ने हिंदुओं की धार्मिक व व्यापक सांस्कृतिक विरासत के साथ राष्ट्रीय पहचान को बढ़ावा देने की मांग की है। हिंदुत्व की परिभाषा और उपयोग का संबंध कई अदालती मामलों का हिस्सा रहा है। 1966 में, मुख्य न्यायाधीश गजेंद्रगडकर ने यज्ञपुरुष दास जी (एआईआर 1966 एससी 1127) में भारत के सर्वोच्च न्यायालय में लिखा था, 'हिंदू धर्म को परिभाषित करना असंभव है'। अदालत ने राधाकृष्णन की इस दलील को अपनाया कि हिंदू धर्म जटिल है, आस्तिक और नास्तिक, संशयवादी और अज्ञेयवादी, सभी हिंदू हो सकते हैं; यदि वे संस्कृति और जीवन की हिंदू वादी प्रणाली को स्वीकार करते हैं। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि हिंदू धर्म का ऐतिहासिक रूप से एक समावेशी स्वभाव रहा है और इसे व्यापक रूप से जीवन के एकरूप में वर्णित किया जा सकता है और इससे ज़्यादा कुछ नहीं। हिंदुत्व शब्द का प्रयोग 1890 के अंत तक चंद्रनाथ बसु द्वारा किया जा रहा था, जिन्होंने बाद में बाल गंगाधर तिलक द्वारा और फिर वीर सावरकर की हिंदुत्व विचारधारा 1925 में नागपुर (महाराष्ट्र) में केशव बलिराम हेडगेवार तक पहुंची। प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू कैबिनेट में शामिल रहे, श्यामा प्रसाद मुखर्जी मानते थे कि, "हिंदुत्व विचाधारा हिंदू मूल्यों को बनाए रखने के लिए है न कि अन्य धार्मिक समुदायों के बहिष्कार के लिए"। उन्होंने हिंदू महासभा की सदस्यता को सभी समुदायों के लिए खोलने की माँग की। जब यह स्वीकार नहीं किया गया, तो उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया व आरएसएस के सहयोग से एक नए राजनीतिक दल, 'भारतीय जन संघ' की स्थापना की, जो बाद में भारतीय जनता पार्टी बनी। 
उन्होंने हिंदू धर्म व हिंदुत्व को एक समुदाय के बजाय एक राष्ट्रीयता के रूप में समझा। ऐसे में हिंदुत्व को न ही धर्म के रूप में देखा जा सकता है और न ही इस्लामिक कट्टरता, इस्लाम-फोबिया जैसी विचारधारा के रूप में। लेकिन चुनावों में हिंदुत्व का प्रयोग करना राजनीतिक दलों द्वारा आम जनता से संबंधित प्रमुख सामाजिक व आर्थिक मुद्दों से ध्यान भटकाना है। वोट के लिए धर्म व जाति का प्रयोग करने वाले दल व नेताओं को जनता को नकार देना चाहिए। चूंकि सभी वर्गों को भारत के संविधान का संरक्षण प्राप्त है। इसलिए प्रत्येक राजनीतिक दल के लिए सबसे पहले 'राष्ट्र' महत्वपूर्ण होना चाहिए। जनता के लिए रोज़ी-रोटी, अर्थिक उत्थान, सामाजिक समावेश आदि एजेंडे होने चाहिए।
वसुधैव कुटुम्बकम्' विचार की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है। इसके दो शब्द, 'वसुधा' जिसका अर्थ है - पृथ्वी और 'कुटुम्ब' जिसका अर्थ है - परिवार, दोनों मिलकर बनता है, 'वसुधैव कुटुम्बकम्' जिसका अर्थ हुआ, सम्पूर्ण विश्व एक परिवार है। वसुधैव कुटुंबकम का सिद्धांत बेहतर भविष्य का खाका पेश करता है। एकता, सहयोग और आपसी सम्मान को बढ़ावा देकर हम संघर्षों को दूर करने व सुलझाने तथा असमानताओं को कम करने की दिशा में काम कर सकते हैं। वसुधैव कुटुंबकम् की भावना एक ऐसी दुनिया का निर्माण करेगी जो अधिक शांतिपूर्ण, सामंजस्यपूर्ण और समावेशी होगी। नागरिकों को भी धर्म व जाति की दीवार तोड़कर खुद को एक भारतीय मानते हुए राष्ट्र निर्माण के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग करना चाहिए।
प्रो: नीलम महाजन सिंह
(वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक, सामरिक अन्तरराष्ट्रीय कूटनीतिक विशेषज्ञ, दूरदर्शन व्यक्तित्व व मानवाधिकार संरक्षण सॉलिसिटर)
singhnofficial@gmail.com 

Comments