राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द होने का सत्य
~प्रो: नीलम महाजन सिंह~
☆न्यायाधीश हदीराश वर्मा, सूरत डिस्ट्रिक्ट कोर्ट मैजिस्ट्रेट ने, राहुल गांधी के खिलाफ दायर मानहानि के मामले में उन्हें दोषी ठहराया है। इस के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी को लोकसभा के सांसद के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया है। विपक्षी नेता इस कदम के खिलाफ हैं; "हम इसके कानूनी पक्ष पर करीबी से नज़र रखे हुए हैं"। राहुल गांधी को अयोग्य क्यों ठहराया गया? सजायाफ्ता प्रतिनिधियों की अयोग्यता पर कानून क्या कहता है और अब क्या होगा? यह मामला गांधी के 2019 के राजनीतिक अभियान के दौरान, कोलार, गुजरात में दिए गए 'विवादास्पद' भाषण से संबंधित है, जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को, नीरव मोदी और ललित मोदी जैसे भगोड़ों के साथ तुलना की थी। उन्होंने कहा था, "नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी; सभी चोरों का उपनाम 'मोदी' ही होता है"। पूर्णेश मोदी, पूर्व भाजपा विधायक ने उक्त भाषण पर आपत्ति जताते हुए दावा किया कि राहुल गांधी ने "मोदी उपनाम वाले पिछड़े समाज के व्यक्तियों को अपमानित व बदनाम किया है"। अदालत ने इससे सहमति जताई और माना कि राहुल गांधी ने 'मोदी' उपनाम वाले सभी लोगों का अपमानित किया है। न्यायाधीश हदीराश वर्मा ने कहा, "चूंकि राहुल गांधी सांसद हैं, इसलिए वे जो भी कहते हैं, उसका अधिक प्रभाव पड़ता है। ऐसे में उन्हें संयम बरतना चाहिए था"। राहुल गांधी को भारतीय दंड संहिता की धारा 499 व 500 के तहत दोषी ठहराया गया है, जिसके लिए अधिकतम सजा दो साल और/या जुर्माना है। अदालत ने, हालांकि, उन्हें ज़मानत दे दी और 30 दिनों के लिए सज़ा को निलंबित कर दिया ताकि उन्हें उच्च न्यायालय में अपील करने की अनुमति मिल सके। सूरत अदालत के फैसले के 24 घंटे से भी कम समय के बाद लोकसभा सचिवालय द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि गांधी संविधान के अनुच्छेद 102 (1) (ई) के प्रावधानों के संदर्भ में अपनी सजा की तारीख से एक सांसद के रूप में अयोग्य हैं। भारत जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 के साथ पढ़ा जाता है। यदि वे संसद द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के तहत या उसके द्वारा अयोग्य घोषित किये जाते हैं, जो दोष सिद्ध होने पर प्रतिनिधियों को अयोग्य घोषित करता है। सारांशार्थ यह कहना उचित होगा कि वास्तव में, राहुल गांधी को सांसद के रूप में उनकी अयोग्यता प्रभावी होने से पहले, दोषसिद्धि की तारीख से तीन महीने का समय दिया जाना चाहिए था। हालांकि, यह प्रावधान 2013 के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में आलोकित है। रेफरेंस: 'लिली थॉमस बनाम भारत संघ' (2013) में, सर्वोच्च न्यायालय ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 (4) को संविधान के अधिकारातीत घोषित करके योग्यता के मापदंडों को मज़बूत किया। लोकसभा से राहुल गांधी की अयोग्यता को केवल तभी बदला जा सकता है जब सूरत नगर न्यायालय से उच्च न्यायालय की अदालत द्वारा दोषसिद्धि पर रोक लगती है। हालाँकि, अपील को गांधी के पक्ष में तय होने की पूर्ण संभावना है और उच्च न्यायालय सज़ा पर रोक भी लगाएगा। 'लोक प्रहरी बनाम भारत संघ' में अपने 2018 के फैसले में, अदालत ने माना था कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 389 के तहत सज़ा पर रोक लगाने पर, धारा 8 के तहत अयोग्यता लागू नहीं होगी। तत्कालीन सीजेआई जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की तीन जजों की बेंच ने यह फैसला सुनाया था। वैसे तो वरिष्ठ अधिवक्ताओं, कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, जो न्याय मंत्री रह चुके है, का यह मानना है कि न्यायधीश को कम से कम सजा देनी चाहिए थी, दो महीने की। भाजपा प्रवक्ताओं, धर्मेन्द्र प्रधान व अनुराग ठाकुर का कहना है कि राहुल गांधी बहुत अनाप-शनाप बोल कर प्रधान मंत्री के पद की गरिमा को तो ठेस पहुंचाते ही हैं परंतु अपने शब्दों का भद्दा चयन भी करते हैं। विपक्षी दलों के नेताओं, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, मल्लिकार्जुन खड़गे, एम.के. स्टालिन ने राहुल गांधी के निष्कासन को प्रजातांत्रिक पद्धतियों पर प्रहार माना है। हालाँकि राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के लिए अपशब्दों की शुमार लगी रहती है, उदाहरणार्थ, 'मौत का सौदागर', 'इटली की डांस-बार सफाईकर्मी', '50 करोड़ की गर्लफ्रेंड', 'पास्ता गांधी', 'पप्पू', 'टंच माल' आदि। राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने वाले लोगों को स्वयं पर संयम रखना चाहिए। राहुल गांधी को उच्च न्यायालयों द्वारा राहत मिलने की पूर्ण संभावना है। राजनेताओं को युवा पीढ़ी के लिए उदाहरण बनने का प्रयास करना चाहिए।
• प्रो: नीलम महाजन सिंह •
(वरिष्ठ पत्रकार, विचारक, राजनैतिक समीक्षक,दूरदर्शन व्यक्तित्व, मानवाधिकार संरक्षण सॉलिसिटर व परोपकारक)
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