Narendra Modi's Government contemplating to enforce Uniform Civil Code: Justice Arun Mishra

The Navgrah Times 13.12.2022
समान नागरिक संहिता लागू होने का उपर्युक्त समय
प्रो: नीलम महाजन सिंह 
☆नरेंद्र मोदी सरकार, समान नागरिक संहिता को लागू करने की कर्मशील है. जस्टिस अरुण कुमार मिश्रा, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के अध्यक्ष ने समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) की ज़ोरदार वकालत की है। उन्होंने कहा कि ये किसी भी धर्म की प्रथा को प्रभावित नहीं करेगा, बल्कि ये महिलाओं के समान अधिकार को सुनिश्चित करेगा। उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर देते हुए कहा कि यू.सी.सी. को लागू करने के लिए सकारात्मक कदम उठाना केंद्र सरकार का कर्तव्य है। इससे पहले दिल्ली उच्च न्यायालय की जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह, दो वर्षों से समान नागरिक संहिता को लागू करने के निर्देश दे चुकी हैं। जस्टिस अरुण मिश्रा के मुताबिक यू.सी.सी. को लागू करने का समय आ गया है। इसे संविधान में निर्धारित किया गया है, ऐसे में इसको पूरी तरह से अनदेखा नहीं किया जा सकता। महिलाओं को भेदभाव से बचाने के लिए अधिनियमों का क्रियान्वयन करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि कई तरह की धार्मिक प्रथाओं के नाम पर महिलाओं के साथ भेदभाव हो रहा है, जिसको खत्म करने की कोशिश की जाएगी। "इसके अलावा पुरुषवाद को भी खत्म किया जाएगा"। उन्होंने समान नागरिक संहिता के आलोचकों पर निशाना साधते हुए कहा कि यू.सी.सी. का विरोध करने वाले लोगों के पास कोई तर्क नहीं है, जब भी कोई अच्छी चीज़ आती है तो उसका विरोध होता ही है। जस्टिस मिश्रा ने कहा कि संविधान में यू.सी.सी. लागू करने का निर्देश हमेशा से था, परन्तु सरकार को सिर्फ समय चुनना था। मौजूदा वक्त में महिलाएँ अपने अधिकारों के लिए लड़ रही हैं, उन्हें समानता देनी चाहिए। समान आचार संहिता महिलाओं को सम्मान प्रदान करेगा क्योंकि उनको लंबे समय से समानता से वंचित रखा गया है। बीजेपी सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने गत 09 नवंबर 2022, को राज्यसभा में समान नागरिक संहिता पर निजी सदस्य बिल पेश किया; जिसका कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और डी.एम.के. समेत तमाम विपक्षी दलों ने विरोध किया है। अगर ये कानून लागू होता है तो सभी नागरिकों पर ये समान रूप से लागू होगा। इससे किसी धर्म, जाति, लिंग को रियायत नहीं मिलेगी। विपक्ष का आरोप है कि एक धर्म को निशाना साधने के लिए सरकार ये कानून ला रही। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह द्वारा सरकार को इसे लागू करने का निर्देश दिए जाने के बाद समान नागरिक संहिता खबरों में रही है और इस पर विचार-विमर्श किया जा रहा है। सामान नागरिक संहिता की ओर नरेंद्र मोदी सरकार अग्रसर है। दिल्ली उच्च न्यायालय की पीठ; माननीय जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने महत्वपूर्ण आदेश दिया था, जिससे देश की राजनीति पुणः गर्मा गयी। भारत में फिलहाल संपत्ति, शादी, तलाक और उत्तराधिकार जैसे मामलों के लिए हिंदू, ईसाई, ज़ोरेसटरीयन और मुसलमानों का अलग-अलग पर्सनल लॉ है। इस कारण एक जैसे मामलों को निपटाने में पेचीदगियों का सामना करना पड़ता है। देश में लंबे अरसे से समान नागरिक संहिता लागू करने को लेकर बहस होती रही है। खासकर भाजपा जोर-शोर से इस मुद्दे को उठाती रही है, लेकिन कांग्रेस व अन्य विपक्षी दल इसका विरोध करते रहे हैं। तीन तलाक (ट्रीपल तलाक) को अवैध करार कर भाजपा ने मुस्लिम महिलाओं को अपना वोट बैंक बनाया। इसका सामाजिक और धार्मिक असर तो पड़ता ही है। राजनैतिक दलों की अपनी-अपनी सोच है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के प्रथम और द्वितीय काल में, जनसंघ से भारतीय जनता पार्टी का अकल्पनीय विस्तार हुआ है। दो मूल उद्धेश्य लागू कर दिये गये हैं। पहला राम मंदिर निर्माण और दूसरा कश्मीर से धारा 370 को समाप्त कर, वहाँ राष्ट्रपति शासन लगा, उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा को नियुक्त कर, कशमीरी नेताओं के साथ समन्वय और समाधान डूंढने का प्रयास। राह मगर जटिल है! राम मंदिर भूमितल का सुप्रीम कोर्ट का 2:2 का फैसला था। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई का वीटो निर्णय था। जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अरविंद बोबडे ने बाबरी मस्जिद वाली भूमी को सरकार द्वारा नोटीफाई कर, वहां राम मन्दिर निर्माण का फैसला दिया। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस धनंजय वाई. चन्द्रचूड एवं जस्टिस एस.अब्दुल नाज़ीर ने असहमति जताई तथा अन्य फैसला दिया। इस कारण जस्टिस रंजन गोगोई का पक्ष मे फैसले की निर्णयक भूमिका रही। गोगोई का राजनीतिक भूमिका पर अनेक प्रश्न चिन्ह हैं। तुरंत उन्‍हें राज्य सभा का सदस्य मनोनीत कर दिया गया था। फिर कश्मीर समस्या का हल काफी संवेदनशील मुद्दा है। 'एक विधान एक निशान' द्वारा ,अटल बिहारी वाजपेयी के कश्मीरीयत, जमहुरियत और इंसानियत के सिद्धांत को वास्तव मे धरातल पर उतर पाना जटिल है। अब कश्मीर को भी यूनियन टेरीट्री घोषित कर दिया गया है। जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने कहा था कि, सामान नागरिक संहिता की ज़रूरत लागू करने का सही वक्त आ गया है। अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि आर्टिकल 44 में जिस यूनिफार्म सिविल कोड की उम्मीद जताई गई है, अब उसे हकीकत में बदलना चाहिए। जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने कहा, "भारतीय समाज में धर्म, जाति, विवाह आदि की पारंपरिक बेड़ियां टूट रहीं हैं। युवाओं को अलग-अलग पर्सनल लॉ से उपजे विवादों के कारण शादी और तलाक के मामले में संघर्ष का सामना न करना पड़े। ऐसे में कानून लागू करने का यह सही समय है"। कोर्ट ने समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए केंद्र सरकार को जरूरी कदम उठाने का निर्देश दिया है। जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह की पीठ, राजस्थान की मीणा जनजाति की महिला और उसके हिंदू पति की तलाक की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। नागरिकों को विभिन्न पर्सनल लॉ में विरोधाभास के कारण संघर्ष से बचाना है। अदालत ने निर्देश दिया कि इस आदेश की जानकारी केंद्र सरकार के विधि एवं न्याय मंत्रालय के सचिव को दी जाए, ताकि वह आवश्यक कार्रवाई करें। मौजूदा मामले में भी अलग-अलग कानून का विरोधाभास सामने आने पर हाईकोर्ट ने यह आवश्यकता समान नागरिक संहिता को कार्यान्वित करने के आदेश दिए हैं। इस जोड़े की शादी 24 जून, 2012 को हुई थी। पति ने 2 दिसंबर, 2015 को परिवार अदालत में तलाक की याचिका दायर की। महिला का पति हिंदू विवाह कानून के मुताबिक तलाक चाहता था। लेकिन महिला का कहना है कि वह मीणा समुदाय से ताल्लुक रखती है, इसलिए उस पर हिंदू मैरिज एक्ट लागू नहीं होता। बाद में फैमिली कोर्ट ने हिंदू मैरिज एक्ट-1955 का हवाला देते हुए याचिका को खारिज कर दिया। फैसले में कहा गया कि महिला राजस्थान की अधिसूचित जनजाति से है, इसलिए उस पर हिंदू विवाह कानून लागू नहीं होता। महिला के पति ने फैमिली कोर्ट के फैसले को 28 नवंबर, 2020 को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को दरकिनार करते हुए पति की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि इस तरह के मामलों के लिए ही ऐसे कानून की जरूरत है, जो सभी के लिए समान हो। कोर्ट ने यह भी कहा, उसके सामने ऐसा कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया है, जिससे यह पता चले कि मीणा जनजाति समुदाय के ऐसे मामलों के लिए कोई विशेष अदालत है। क्या है समान नागरिक संहिता ? संविधान के अनुच्छेद 36 से 51 तक के द्वारा राज्यों को कई मुद्दों पर सुझाव दिए गए हैं। जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने इस कानून की जरूरत पर बल देते हुए कहा, संविधान के अनुच्छेद 44 में उम्मीद जताई गई है कि राज्य अपने नागरिकों के समान नागरिक संहिता की सुरक्षा करेगा। अनुच्छेद की यह भावना महज उम्मीद बनकर ही नहीं रह जाए। अनुच्छेद 44 राज्य को सही समय पर सभी धर्मों के लिए समान नागरिक संहिता बनाने का निर्देश देता है। दरअसल देश में समान नागरिक संहिता का मामला पहली बार 1985 में शाहबानो केस के बाद सुर्खियों में आया। सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के बाद शाहबानो के पूर्व पति को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि समान नागरिक संहिता लागू होनी चाहिए। गुप्तचर विभाग ने यह सूचना दी कि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से मुस्लिम समुदाय मे रोष है। तब राजीव गांधी की सरकार ने संसद में विधेयक पास करा कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था। तभी केरल के राज्यपाल, आरिफ मोहम्मद खान, ने लोक सभा सा त्यागपत्र दिया था। हाई कोर्ट ने 1985 में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से जारी एक निर्देश का हवाला देते हुए निराशा जताई कि तीन दशक बाद भी इसे गंभीरता से नहीं लिया गया है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस शरद अरविंद बोबडे ने गोवा के यूनिफॉर्म सिविल कोड की तारीफ की थी। बतौर सी.जे.आई. गोवा में हाई कोर्ट बिल्डिंग के उद्घाटन के मौके पर चीफ जस्टिस ने कहा था कि गोवा के पास पहले से ही ऐसा यूनिफॉर्म सिविल कोड है जिसकी कल्पना संविधान निर्माताओं ने की थी। 'एक देश, एक कानून' को किस प्रकार, विभिन्न जातियां, धर्म, समुदाय स्वीकार करेंगें, यह कहना काल्पनिक होगा। भारतवर्ष मे अभी तक, विभिन्नता मे एकता तो है, परंतु राजनैतिक रूप से यह कितना प्रभावी होगा, समय ही बतायेगा। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि समान नागरिक संहिता, सभी धर्मों के अनुयायियों को समान सामाजिक न्याय देने में सक्षम होगा।
•नीलम महाजन सिंह•
(वरिष्ठ पत्रकार, विचारक, राजनैतिक समीक्षक, दूरदर्शन समाचार संपादक, मानवाधिकार संरक्षण अधिवक्ता, लोकोपकारक)
singhnofficial@gmail.com

Comments