मैं हूँ गंगा #Neelam_Mahajan_Singh
(अन्तर्यात्रा: काव्य संग्रह: नीलम महाजन सिंह, विरागंना, क्रांतिकारी कार्तिका, द्वारा भगवान् शिव - महादेव, माँ गंगा और महिलाओं के 'स्वयं - गंगा - स्वरूप', पर कविता :-
मैं हूँ गंगा
मुझ पर है त्र्यंबकार वरदान
शिव की जटाओं से आई हूँ मैं
कौन रोकेग वेग को मेरे ?
वेग मेरा रूक नहीं सकता !
गंगा की गहराई में
विरला ही कूदेगा ?
किनारे - किनारे
गंगा तट तक सिमित !
'हर हर गंगे' कहने वालो
जानते हो ?
कितना प्रदूषित किया है
तुमने मुझे ?
फिर पूछते हो
गंगा प्रदूषित हो चुकी ?
हाँ हाँ, यह सत्य है,
बहुत प्रदूषित किया है मुझे
पापियों और हत्यारों ने !
परंतु प्रदुषित हो न सकी मैं !
मेरी पवित्रता की चिंता
तुम मत करो !
मेरी पवित्रता की चिंता
अपवित्र करने वाले
असक्षम हो तुम !
ले जाओ मुझे भर - भर
अपनी पवित्रता के लिए !
गंगा - जली से
गंगा आचमन कर
मानसिक शुद्धीकरण हेतु !
मेरी पवित्रता की चिंता तुम मत करो
ले जाओ मुझे अपनी पवित्रता के लिए !
अपवित्र हो नहीं सकती मैं
शिव की जटाओं से आई हूँ मैं
धारा मेरी, धरातल की धरा है
कौन अपवित्र करेगा मुझे
त्र्यम्बकम् वरदान है मुझपर !
मैं हूँ गंगा
तुम्हारी जननी
शिव की अर्द्धांगिनी
नर में ईश्वर
नारी में ईश्वर
ईश्वर में नरेश्वर
नरेश्वर में परमेश्वर !
मैं हूँ गंगा
पृथ्वी के कोख से जन्मीं
शिव मेरे संरक्षक
धारा मेरी धरा का अमृत है
मैं हूँ गंगा
निर्मल, कोमल, सुन्दर
सत्यम् शिवम् सुन्दरम्
🍁 नीलम महाजन सिंह 🍁
Review of "I am Ganges"
"मैं हूँ गंगा" कविता का श्री शंभू यादव जी, विचारक, अध्यात्म गुरू, समाज सुधारक, लेखक द्वारा विशलेषण :-
कवियत्री श्रीमती नीलम महाजन सिंह जी, क्रांतिकारी कार्तिका, वीरांगना सदैव समाज के लिए और नारियों के उत्थान के लिए संघर्षरत रहीं हैं, ने बहुत ही खूबसूरती से अपनी कविता ' मैं गंगा हूं ' के द्वारा नारी के अस्तित्व और अस्मिता की तुलना, अमृत स्वरूपा , वेगवती गंगोत्री, से की है जो इस सृष्टि के संरक्षक शिव के जटाओं से होकर, इस पावन धरती पर अवतरित हुई है।
गंगा सिर्फ एक नदी ही नहीं बल्कि एक सभ्यता और संस्कृति की पहचान रही है। उसी प्रकार भारतीय नारी इस देश की कन्याओं में पंच कन्या और अमृत में पंचामृत है।
जिस तरह गंगा धरती की पोषक है, उसी तरह नारी भी समाज और परिवार के कल्याण के लिए सदैव अविस्मर्णीय रही है।
गंगा जननी भी है । यह समस्त अवशिष्ट अवगुणों को स्वयं में आत्मसात कर लेती है। उसी तरह नारी समाज के अवगुणों को नष्ट कर, निरंतर प्रवाहित होती रहती है।
यह अपनी पवित्रता और गरिमा को अक्षुण्ण बनाए रखने में सहायक होती है।
नारी और गंगा कभी भी अपवित्र नहीं होती, अपितु यह अवशिष्ट अवगुणों का विनाश करने में सहायक होती हैं ।
जब यह विकराल रूप धारण करती है तब दुर्गा और काली हो जाती है। तथापि विनाश के सभी दरवाजों को खोल देती है और सद्गुणों का आह्वान करती है।
शिव गंगा के संरक्षक हैं । अर्थात नर और नारी मिलकर इस सृष्टि की उत्पत्ति में महती भूमिका का निर्वाहन करतें हैं। जिस तरह नर और नारी मिलकर एक परिवार और देश - काल को रचने में प्रमुख भूमिका अदा करतें हैं।
गंगा और नारी दोनों ही चंचला हैं। अतः इसके वेग को संभालना आसान नहीं होता। इसके मन की गहराई अनंत है। यह शक्ति स्वरूपा हैं।
शंभू यादव Shambhu Yadav
विचारक ॐ 卐 ☪︎✝︎
☆ नीलम महाजन सिंह जी का शंभू यादव जी को धन्यवाद !
Shambhu Yadav jee 🙏💕🌹🌹💐
बहुत बहुत धन्यवाद आपका, शंभू यादव जी !
मेरी कविता "मैं हूँ गंगा" से अधिक गहन तो आप द्वारा लिखा गया रिव्यू है !
आशा करती हूँ आपके द्वारा लिखी यह, अंतराल पंक्तियों का लाभ सभी पाठकों को प्राप्त होगा!
पुनः आभार व्यक्त करती हूँ और नमन्!
नीलम महाजन सिंह जी,
संघर्ष पथ पर अग्रसर,
वीरांगना, क्रांतिकारी कार्तिका 💕💕
☆ आभार 💐🙏 आदरणीया।
भगवान शिव आपके सफलता के हर द्वार को खोल दें।
मैं आपके स्वास्थ्य और शांतिपूर्ण जीवन जीने की कामना करता हूं।
- शंभू यादव -
Devender Shukla says:-
गंगा पर अब तक की सबसे बेहतरीन रचना ! वाह !!
Prabhu Nath Singh says:-
विदुषी, क्रांतिकारी, समाजवादी योद्धा नीलम महाजन सिंह जी ने, माँ गंगा का जो काव्य वर्णन किया है, वह अति अदभूत है । इतनी सुन्दर रचना के लिए बधाई ।
अध्यातक एव समाजिक रूप से देखा जाए तो, समुद्र को पुरूष के रूप में तथा नदियों को स्त्री के रूप मे दर्शाया गया है । गंगा को सर्वश्रेष्ठ पवित्रता के रूप मे माना जाता है । ज़्यादातर हमारे ऋषि, गंगा के किनारे पर ही, अपना आश्रम बनाकर तपस्या करते थे ।
महाऋुषी भगीरथ ने सैकड़ों वर्ष तपस्या करने के बाद, मानव कल्याण हेतु माँ गंगा को ब्रम्हा जी से, आशीर्बाद पाकर पृथिवी पर अवतरित करवाया ।
इस प्रकरण में भगवान शिव भोले नाथ का बहुत बड़ा योगदान था ।
माँ गंगा के वेग को अपनी जटाओं में रोक कर पृथ्वी पर आने दिया ।
अन्यथा गंगा का वेग, इतना प्रबल था, कि पृथ्वी पर जीवन तबाह हो जाता !
उसी को नीलम महाजन सिंह जी ने लिखा है, "शिव की जटाओं से आई हूँ मैं
कौन रोकेगा वेग को मेरे ?
वेग मेरा रूक नहीं सकता..."
वाह कितनी गहराई है, इन पंक्तियों में !
घाघरा नदी को माँ गौरी, कोशी, नील नदी को माँ काली, अन्य नदियों को देवियों के रूप मे अवतरित माना जाता है ।
हमारे समाज मे नारी को नरायणी के रूप मे आदर सम्मान देना हमरी सभ्यता है ।
नरायणी रूपी नारी, बाल्यावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक हमारे समाज/ भारतवर्ष में पूजी जाती है।
विदुषी #नीलम_महाजन_सिंह जी ने गंगा स्वरूपा नारी का वर्णन बहुत ही सुन्दर तरीक़े से, कविता के माध्यम से किया है ।
ऐसे विदुषी को मेरा नमन !
प्रणाम !
प्रभुनाथ सिंह, मौसम विज्ञानी, विचारक, समाजसुधारक
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