Neelam Mahajan Singh's article in The Navgrah Times 01.03.2022 on Rashtriya Swayamsevak Sangh

Navgrah Times/ नवग्रह टाईम्स 01.03.2022 में प्रकाशित मेरा लेख, अवश्य पढ़िये और अपने कॉमेंट्स भी ज़रूर दीजिए। आप का सानिध्य मेरे लिए उत्साहवर्धक है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: संस्कृतिक स्वरूप से राजनैतिक निर्णयक की भूमिका में:-
🌿नीलम महाजन सिंह🌿 

मेरा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ संपर्क राजीव गांधी के प्रधान मंत्री काल मे हुआ। २७.०९.१९२५ को विजय दशमी के दिन, डा: केशव राम बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की।

मैंने प्रोफेसर राजेंद्र सिंह उर्फ 'रज्जू भैया', आर.एस.एस. सरसंघचालक से साक्षात्कार किया, जिसका दूरदर्शन समाचार मे राष्ट्रीय प्रसारण हुआ। मेरा परिचय रज्जू भैया ने श्री के. एस. सुदर्शन, सह - सरकार्यवाहा से करवाया। शायद यह भेंटवार्ता, पहला ऐसा कार्यक्रम था, जिस मे आर.एस.एस. के उद्देश्यों पर चर्चा की गई। के. एस. सुदर्शन जी ने मेरा परिचय, वाल्मिवली मुरलीधरन से करवाया, जो उस समय अखिल भारतीय युवा मोर्चा के अध्यक्ष थे। वी. मुरलीधरन तत्कालिक राज्य विदेश मंत्री व संसदीय राज्य मंत्री हैं। वी. मुरलीधरन को प्रधान मंत्री ने दक्षिण भारत मे, भारतीय जनता पार्टी को सुदृढ करने का कार्य सौंपा है। समय-समय पर सुदर्शन जी से मुलाकात होती थी । फिर उनका स्वास्थ्य बिगड़ा और उनका निर्वाण हुआ। 

आर.एस.एस. को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की संस्था के रूप मे जाना जाता है। लाल कृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी, केदार नाथ साहनी, जो कि जन संघ की स्थापना से जुड़े रहे हैं, संघ के सदस्य होते हुए, राजनैतिक दिग्गज भी रहे। 'हिन्दुत्व' का आह्वान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ही किया था। 'अखंड भारत' का आह्वान, संघ का मूल मंत्र है। 'गर्व से कहो हम हिन्दु हैं' को बाला साहब ठाकरे ने शिव सेना की दहाड़ बनाया।

समय के साथ आर.एस.एस. राजनैतिक समीक्षक मे रूपांतरित हुआ। भारतीय जनता पार्टी को सफलता प्राप्त करवाने मे संघ के स्वयं सेवकों ने सार्थक भूमिका निभाई।   

यह भी सत्य है कि, राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद, उप-राष्ट्रपति वैंकैया नायडू, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, ओम बिड़ला, लोक सभा स्पीकर, सभी आर.एस.एस. के ही समर्थक एवं सदस्य रहे हैं।

'समन्जसय या समन्वय', के बारे में भाजपा नेता चाहे जो भी स्पष्टीकरण दें, सत्य तो यह है कि अधिकांश राज्यसभा सांसद संघ से ही हैं। प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री, रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री और गृह मंत्री जैसे शीर्ष नेताओं का निर्णय भी संघ ही ले रहा है। आर.एस.एस. प्रमुख डाः मोहन भागवत्स - सरसंघचालक, डा: कृष्ण गोपाल तथा डा: इंद्रेश कुमार, सह-सरकार्यावाहा, संघ और सरकार में समन्वय की महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का प्रयास कर रहे हैं। आर.एस.एस. के समक्ष अधिकारियों को अपने मंत्रालय से संबंधित प्रेजेंटेशन भी दिया जा रहा है।

ऐसा नहीं है कि इससे पहले केंद्रीय मंत्रियों समेत, भाजपा नेताओं ने संघ से बातचीत नहीं की या नीतिगत मुद्दों पर उनसे विमर्श नहीं लिया। लेकिन ऐसा पहले कुछ नेताओं के स्तर पर ही होता था। वरिष्ठ भाजपा नेता, संघ की बैठकों में भाग लेते रहे हैं और वहां होने वाली चर्चाओं को सरकार के कार्यक्रमों में समन्वित करने का प्रयास किया जाता रहा है।

यहां तक कि प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी संघ के नेताओं से मिलते थे। संघ के नेताओं को उनके साथ एक समस्या थी कि उन्होंने अपनी सरकार में उन लोगों को प्रधानता दी, जो संघ की पृष्ठभूमि के नहीं थे। जैसे कि उनके प्रधान सचिव बृजेश मिश्रा, जसवंत सिंह या यशवंत सिन्हा। 

असल में भाजपा जब 1998 में पहली बार सत्ता में आई, तो जसवंत सिंह को वित्त मंत्री बनाने के वाजपेयी के फैसले को शपथ ग्रहण के कुछ घंटे पहले निरस्त कर दिया गया था। यह आर.एस.एस. के दबाव में किया गया। एन.डी.ए. की पहली सरकार में लालकृष्ण आडवाणी को भी उप - प्रधानमंत्री के रूप में, संघ के दबाव पर ही पदोन्नत किया गया। हालांकि बाद में पाकिस्तान यात्रा के दौरान, जब आडवाणी ने मोहम्मद अली जिन्ना की प्रशंसा की तो संघ ने उन्हें समर्थन नहीं दिया। संघ की तरफ से उन पर इतना दबाव पड़ा कि उन्हें पार्टी अध्यक्ष पद भी छोड़ना पड़ा।

हालांकि अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी भाजपा के संस्थापक हैं - पर तत्कालिक संघ प्रमुख, के. एस. सुदर्शन ने सार्वजनिक तौर पर, 'युवाओं को राजनीति मे आगे आने के लिए उनके इस्तीफे की मांग की थी'। प्रो: राजेंद्र सिंह (रज्जू भैया), भाऊराव देवरस आदि भाजपा को विभिन्न विषयों पर अपनी राय देते रहे हैं।

दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना नानाजी देशमुख द्वारा सन् १९७२ में की गई। इसका मुख्य उद्देश्य दीनदयाल उपाध्याय के विचारों को फलीभूत करना है। इसके द्वारा उत्तर प्रदेश के गोण्डा जिले के जयप्रभा ग्राम में सन् १९७८ में कार्य आरम्भ किया गया। गोंडा में कार्य की सफलता से अन्य राज्यों, बिहार, मध्यप्रदेश (चित्रकूट), महाराष्ट्र आदि में इसका प्रसार किया गया। नाना जी द्वारा राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर कार्यशालायें आयोजित की जाती थीं। सामाजिक नव रचना की कर्मभूमि: चित्रकूट, दीनदयाल शोध संस्थान के सफलता की कहानी है। 
मेरा नाना जी देशमुख से परिचय था। वे समय समय पर मुझसे बातचीत करते थे। कई बार दीन दयाल शोध संस्थान मे उनसे मुलकात हुई। नाना जी भी संघ से ही राज्य सभा के सदस्य थे। नरेंद्र मोदी सरकार ने उन्हें मृत्योपरांत, पद्म विभूषण से सम्मानित किया। 

दत्तोपन्त ठेंगड़ी राष्ट्रवादी ट्रेड यूनियन नेता एवं भारतीय मजदूर संघ, स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय किसान संघ के संस्थापक थे। ठेंगड़ी जी ने पद्मभूषण सम्मान को विनम्रतापूर्वक अस्वीकार किया। 

इन दिग्गज आर.एस.एस. सदस्यों का संबंध भारतीय जनता पार्टी से ही तो था? आने वाली शताब्दि “हिंदू शताब्दि” कहलाएगी, इस विश्वास को वैचारिक दिशा प्रदान करने वाले, डॉ॰ हेडगेवार, गुरुजी तथा दीनदयाल उपाध्याय की ही विचारधारा थी। 

जाहिर है कि संघ और भाजपा के बीच अटूट रिश्ता है। भाजपा और इसके पूर्व अवतार, भारतीय जनसंघ की कल्पना आर.एस.एस. के राजनीतिक मोर्चे के रूप में हुई थी। वास्तव में जनता पार्टी में टूट, जनसंघ एवं आर.एस.एस. की दोहरी सदस्यता के मुद्दे पर ही हुई थी। पचास के दशक से ही जनसंघ या भाजपा का संगठन सचिव आर.एस.एस. के कार्यकर्त्ता थे। संघ - भाजपा का संरक्षक और सलाहाकार की भूमिका निभा रहा है। भूमी अधिग्रहण विधेयक पर सरकार को, 'भारतीय किसान संघ' के दबाव में झुकना पड़ा। 
प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी संघ की भावना के प्रति सचेत हैं। मोहन भागवत, संघ प्रमुख के लिए जेड प्लस सुरक्षा, उनके साथ दूरदर्शन और अन्य चैनलो की टीमो द्वारा मिडिया कवरेज, से यह स्पष्ट है कि केंद्र सरकार, संघ का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए सतर्क है। 

संघ या उसके सहयोगी संगठनों को दरकिनार नहीं किया जा सकता है। संघ ने भी नियंत्रण रेखा (LOC) पर उल्लंघन के बावजूद, पाकिस्तान के साथ बातचीत को अपनी स्वीकृति दी थी। 

मंदिर निर्माण के लिए सर्वोच्च न्यायालय के 3:2 के निर्णय, समय तय करने व मूल एजेंडे के लिए दबाव बनाता रहा है। 

मानव संसाधन विकास मंत्रालय के महत्वपूर्ण पदों पर संघ के पसंदीदा लोगों को नियुक्त किया जाता है। जाहिर है, भाजपा एवं संघ के बीच परस्पर लाभ का रिश्ता है। अब खुले आम पार्टी और संघ का मिश्रण हो चुका है। पिछले वर्ष प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की जीत के लिए, संघ के कार्यकर्ताओं ने अपनी पूरी ताकत झोंकी थी। 'सरकार क्या कर रही है और क्या नहीं कर रही' के मुद्दे पर संघ प्रमुख की अध्यक्षता में तीन दिनों तक मूल्यांकन बैठक भी हुई, जिसमें संघ के आला नेताओं के साथ लगभग पूरा मंत्रिमंडल शामिल हुआ था।

अमीत शाह, गृह मंत्री एवं उनकी टीम के अधिकारी, मोहन भागवत के पास जाकर संघ को ब्योरा देते हैं, कि उनकी पार्टी की सरकार ने अब तक क्या किया है। अब व्यक्तिगत स्तर पर संघ नेतृत्व का मार्गदर्शन हासिल करने या फिर प्रधानमंत्री द्वारा संघ से मार्गदर्शन लेने की बात को अब आपत्तिनजक नहीं समझा जाता। मंत्रिमंडल के सदस्य, संघ के समक्ष प्रस्तुत होते हैं तो अनेक राजनीतिक समीक्षक उस पर प्रश्न चिन्ह भी लगाते हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय राजनीतिक परिदृश्य पर पूर्ण नियंत्रण रख रहा है। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने, संघ के साथ अपने संबंधों को स्वीकार किया है। संवैधानिक औचित्य और राजनैतिक प्रतिबद्घता मे आर.एस.एस. का दार्शनिक महत्व और भाजपा का राजनैतिक वर्चस्व, अब एक दूसरे के पूरक हैं।
~ नीलम महाजन सिंह ~
(वरिष्ठ पत्रकार, विचारक, राजनैतिक समीक्षक, पूरव दूरदर्शन समाचार संपादक, मानवाधिकार संरक्षण अधिवक्ता तथा लोकोपकारक)

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