सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" द्वारा रचित:-भोर बेला नदी तट की घंटियों का नादचोट खा कर जग उठा सोया हुआ अवसादनहीं, मुझ को नहीं अपने दर्द का अभिमानमानता हूँ मैं पराजय है तुम्हारी याद(काशी, 14 नवम्बर, 1946)

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" द्वारा रचित:-
भोर बेला नदी तट की घंटियों का नाद
चोट खा कर जग उठा सोया हुआ अवसाद
नहीं, मुझ को नहीं अपने दर्द का अभिमान
मानता हूँ मैं पराजय है तुम्हारी याद
(काशी, 14 नवम्बर, 1946)

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