Neelam Mahajan Singh's article in Inquilab Urdu newspaper 02.10.2021 on Emerging political connotations in Punjab. Please read it ...

02.10.2021 Inquilab Urdu newspaper 
Emerging political connotations in Punjab; 
by #neelam_mahajan_singh 
Neelam Mahajan Singh in Inquilab Urdu newspaper 02.10.2021 
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पंजाब में नेतृत्व के नये समीकरण: 
~नीलम महाजन सिंह~ 
पिछले कुछ महिनों से कांग्रेस की संगठनात्मक नकारात्मकता का प्रमाण पंजाब में देखने को मिला। आखिर क्या चाहते हैं नवजोत सिंह सिद्धू? इस मिसगाइडेड मिसाइल (सुखबीर बादल का तंज) ने अपना निशाना चूक दिया। राजनीतिक रूप से क्रेश हो गया यह मिसगाइडेड मिसाइल! ठोको यार ठोको। पंजाब कांग्रेस के अध्यक्षपद से नवजोत सिंह सिद्धू ने इस्तीफा क्यों दिया? मैंने पिछले कुछ महिनों में पंजाब की राजनीतिक हलचल पर अनेक विश्लेषण किये हैं। भाजपा ने कहा है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह अपनी राष्ट्रवादी भावनाओं के लिए जाने जाते हैं। यदि कांग्रेस से उनका मोहभंग हो गया हो तो पार्टी के द्वार उनके लिए  खुले हैं। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की है। माना जा रहा है कि नवजोत सिंह सिद्धू से नाराज़ कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस से अपना रिश्ता जल्द ही तोड़ सकते हैं। "आई एम सौरी अमरिंदर," कहने वाली कांग्रेस अध्यक्षा के लिए वास्तव में, मैं सौरी फील करती हूं। वैसे कांग्रेस के मुंह पर कालक मलने वाले, उत्तराखंड के थके हारे नेता, हरीश रावत को पंजाब में राजनीतिक रायता बनाने के लिए तुरंत निष्कासित कर देना चाहिए। वैसे तो कांग्रेस हाईकमान असमर्थ हो चुका है। यदि कांग्रेस पार्टी का पंजाब में राजनीतिक पतन होने के कारणों को समझें तो उसमें व्यक्तिगत आकांक्षाएं पार्टी के लिए भारी पड़ीं। वैसे तो नवजोत सिंह सिद्धू ने कांग्रेस का दामन 2017 में ही पकड़ा था। 
52 वर्ष से राजनीति में सेवा कर रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह को निष्क्रिय कर, सत्ता से हटाकर स्वयं मुख्यमंत्री बनने के स्वप्न देखने वाले सिद्धू की हालत, धोबी का कुत्ता ना घर का ना घाट का, वाली हो गयी है। जिस प्रकार से कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ एक साज़िश रची गई कि प्रजातांत्रिक रूप से चुने हुए 'जनता के कैप्टन' को एक षड्यंत्र द्वारा हटाकर राजनीतिक रूप से नवजात-नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब में थोपना, कांग्रेस की भारी भूल थी। इससे कांग्रेस का पंजाब में आधार हमेशा के लिए समाप्त हो गया है। क्या कांग्रेस पंजाब में एक बार फिर अपने को राजनीतिक रूप से जिवंत कर पाएगी? पंजाब में तो बस कांग्रेस को एक काली सुरंग ही नजर आ रही है। इन सब घटनाओं से सोनिया गांधी की राजनीतिक बुद्धिमता, वास्तविकता और धरातल पर काम कर रहे राजनैतिक नेताओं को दरकिनार करना और अपनी ही चंडाल चौकड़ी का निर्णय राज्यों पर थोपना,  कांग्रेस के लिए भारी पड़ा। सिद्धू के पास क्या उपाय हैं? पहले से ही सिद्धू किसी भी पार्टी की तरफ अपनी प्रतिबद्धता नहीं निभा रहे थे। भाजपा से चुनाव लड़ कर लोकसभा में आए थे। इसमें उन्हें शिरोमणि अकाली दल का भी सहयोग था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'सिक्सर सिद्धू' की हर बात मानी और उन्हें प्रमुख प्रचारक बनाया। परंतु सिद्धू ने यह सोच लिया कि यदि वह पंजाब में राजनीतिक भाषण देते हैं या अलग-अलग रैलियों को संबोधित कर अपनी पार्टी को विजयी बनाते हैं, तो उन्हें ही मुख्यमंत्री बनना चाहिए। इससे पंजाब के वरिष्ठ नेताओं को भी आघात पहुंचा है। उनका मानना है कि वे पंजाब कांग्रेस में 40-50 वर्षों से कार्यरत हैं और धरातल तक उन्होंने जनता की सेवा की है। तो फिर नवजोत सिंह सिद्धू को को प्राथमिकता क्यों दी जा रही है? क्या राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा और कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी की गुड बुक्स में होना ही कांग्रेसियों के लिए महत्वपूर्ण है? हारे हुए प्रत्याशियों को राज्यसभा में ले आना भी कांग्रेस की भूल है। 2017 में कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में, जबकि अधिकतर राज्यों में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हुआ था, तो कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगम्य मेहनत और हर डिस्ट्रिक्ट और क्षेत्र में जाकर 'वन टू वन' व्यक्तिगत प्रचार करने से कांग्रेस को बहुमत प्राप्त हुआ था। कैप्टन अमरिंदर सिंह सत्ता में 10 वर्षों के अंतराल के बाद आए थे। पंजाब की जनता में अकाली दल के खिलाफ भी 'फैटिग फैक्टर' (fatigue factor) था। वैसे भी प्रकाश सिंह बादल अपनी आयु के कारण पंजाब के मुख्यमंत्री पद की ओर पूरा ध्यान नहीं दे पा रहे थे। वास्तव में सुखबीर सिंह बादल और उनकी पत्नी हरसिमरत कौर ही शिरोमणि अकाली दल के मुख्य चेहरे थे। लोगों ने परिवारवाद का आरोप लगा दिया था। वैसे तो कांग्रेस का मुख्य नेतृत्व ही परिवारवाद पर आधारित है। अब यह स्पष्ट हो गया है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को जिस प्रकार से सोनिया गांधी और उनकी टोली के 'जी-हजूरी' करने वाले दरबारियों ने गलत सलाह देकर, एक प्रजातांत्रिक रूप से चुने हुए मुख्यमंत्री को हटाया था, तभी पंजाब की जनता ने यह फैसला कर लिया था कि अब पंजाब में कांग्रेस का जीतना संभव नहीं है। नवजोत सिंह सिद्धू कांग्रेस के लिए ऐसा विष साबित हुए जिसने कांग्रेस को राजनैतिक अपाहिज बना दिया। यह पहली बार है की नवजोत सिंह सिद्धू को खुश करने के लिए पंजाब में 5 प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षों का चयन किया गया। यह स्पष्ट हो गया था की पंजाब कांग्रेस में गहरी फूट है। यह साज़िशन कैप्टन अमरिंदर को हटाने के लिए की गया था। इस साज़िश का परिणाम कांग्रेस के लिए घातक हुआ। नवजोत सिंह सिद्धू तो शेक्सपियर के नाटक जूलियस-सीज़र के ब्रूटस साबित हो चुके हैं। साथ ही साथ कांग्रेस की राजनीतिक नइया को भी डूबा दिया। यदि नवजोत सिंह सिद्धू कैप्टन अमरिंदर सिंह का साथ देते तो उन्हें उप-मुख्यमंत्री भी बनाया जा सकता था। वैसे कैप्टन ने यह घोषित कर दिया है कि वे नवजोत सिंह सिद्धू को किसी भी हालत में पंजाब की राजनीति में टिकने नहीं देगें। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा है कि सिद्धू राष्ट्र द्रोही है और उनके पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान और पाकिस्तानी आर्मी के जनरल बाजवा के साथ व्यक्तिगत संबंध हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने घोषित कर दिया था कि वे इस अपमान का बदला लेंगें। अपनी ही नाक काट कर अपने ही चेहरे को अभद्र करने का काम नवजोत सिंह सिद्धू ने स्वयं किया है। फिर चरणजीत सिंह चन्नी को दलित जाति के नाम पर बार-बर प्रयोग करके डममी (dummy) मुख्यमंत्री बना देना भी दलित समाज ने अन्यथा लिया है। चरणजीत सिंह चन्नी स्वयं भी कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार के महत्वपूर्ण मंत्री थे। उन्हें सिद्धू के जाल में नहीं फंसना चाहिए था। वैसे पंजाब वीरों की धरती है। पंजाब के किसान देश के अन्नदाता हैं। 
पंजाब 10 गुरुओं की सरज़मीन है। पंजाब भयानक आतंकवाद से निकलकर अब समृद्धि की ओर बढ़ रहा है। अब देखना यह होगा की आने वाले समय में राजनैतिक समीकरण क्या होंगे। क्या कैप्टन अमरिंदर सिंह अपनी अलग पार्टी बनाएंगे या भाजपा के समर्थन से पंजाब में विजय पाएंगे? कैप्टन; महाराजा पटियाला तो है हीं परंतु पंजाब के लोगों के भी हृदय सम्राट हैं। पंजाब के लोग ऐसा समझते हैं कि कैप्टन अमरिंदर सिंह एक ऐसे अनुभवी नेता हैं जो कि पंजाब में शान्तिपूर्ण माहौल बना सकते हैं और पंजाब को आर्थिक समृद्धि की ओर ले जा सकते हैं। इन सब घटनाओं से शिरोमणि अकाली दल को लाभ पहुंचा है। चार महीनों के बाद पंजाब विधानसभा के चुनाव हैं। कांग्रेस की राजनीतिक आत्महत्या से अन्य दलों को लाभ पहुंचेगा। जिस प्रकार की खबरें आ रही हैं कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को भाजपा का समर्थन प्राप्त होगा तो ऐसे में कांग्रेस के लिए पंजाब में फिर से आना संभव नहीं है। सच तो यह है कि स्वयं अनेक कांग्रेसी अब कांग्रेस छोड़ किसी अन्य दल में जाना चाहते हैं। नवजोत सिंह सिद्धू ने कांग्रेस में उबलते हुए दूध में, नींबू नीचोड़ने का काम किया है, जिससे कांग्रेस का स्वरूप अस्त-व्यस्त हो गया है। चुनावों में समय कम होने के कारण राजनीतिक गतिविधियां सक्रिय हो जाएंगी। विपक्ष में बैठी आम आदमी पार्टी भी इस राजनीतिक परिस्थिति का लाभ अवश्य उठा सकती है। अरविंद केजरीवाल पंजाब में अपना डेरा डाल लेंगे। कुछ लाभ तो आम आदमी पार्टी को अवश्य मिलेगा। अर्थात शिरोमणि अकाली दल, आम आदमी पार्टी, कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में भाजपा के समर्थन के साथ चुनावों में आना, ऐसे व्यतीत हो रहा है जैसे कि पंजाब में राजनैतिक बादल आ गए हों और सूर्य नज़र आने के लिए इन बादलों का छठना अनिवार्य है। पंजाब कांग्रेस के नाराज़ सदस्य अब कैप्टन अमरिंदर सिंह का नेतृत्व पूर्ण रूप से स्वीकार कर लेंगे। कैप्टन ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वे इस प्रकार के अपमान को कभी नहीं मानेंगे और 'मैं फौजी हूं और फौजी हार नहीं मानता। मैं अपने स्वाभिमान के लिए राजनीतिक लड़ाई अवश्य लडूंगा"। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को यह याद रखना चाहिए कि क्षेत्रीय क्षत्रपों को नाराज़ करने से कांग्रेस राज्य और केंद्र दोनों में ही कमजोर पड़ती है। इसका ज्ञान भाजपा को पूर्ण रूप से है। आने वाले दिन यह स्पष्ट करेंगे कि कैप्टन अमरिंदर सिंह-नरेंद्र मोदी और अन्य, अगर मिलकर चुनाव लड़ें तो शिरोमणि अकाली दल और आम आदमी पार्टी का ही मुकाबला करना होगा। कांग्रेस तो मुकाबले के काबिल ही नहीं रह गई है। भारतीय जनता पार्टी, कैप्टन को पार्टी में शामिल कराकर एक चेहरे के रूप में पेश करना चाहती है। 
कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब के कद्दावर नेता हैं। पंजाब में भाजपा के अनुकूल कोई माहौल नहीं है। किसान आंदोलन की वजह से उसका बचा-खुचा वोट बैंक भी खिसक गया है। ऐसे में कैप्टन अमरिंदर सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी।
            नीलम महाजन सिंह 
(वरिष्ठ पत्रकार, विचारक, राजनैतिक समीक्षक, पूर्व दूरदर्शन समाचार संपादक, मानवाधिकार संरक्षण अधिवक्ता व लोकोपकारक) 
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