Hari Bhoomi 29.10.2021 published my article on Amit Shah's visit to Jammu and Kashmir after abrogation of Article 370 & 35-A. An analysis

#हरी_भूमि में प्रकाशित #नीलम_महाजन_सिंह का लेख; शाह के जम्मू-कश्मीर दौरे से कुछ उम्मीद जगी 29.10.2021 उत्साहवर्धन के लिए जरूर पढ़िये। आप की सेवा हेतु प्रस्तुत है।
Neelam Mahajan Singh's article on Home Minister Amit Shah’s visit to Jammu and Kashmir after abrogation of Article 370 & 35-A & outreach to people of Kashmir national edition 29.10.2021
विशेष राज्य का दर्जा खत्म होने के बाद अमित शाह का जम्मू-कश्मीर के दौरे से कुछ उम्मीदें जागृत हुई हैं।
#नीलम_महाजन_सिंह (कश्मीर की बेटी)
🍁 कश्मीर में आपका स्वागत है, श्रीमान अमित शाह, धरती पर स्वर्ग और मेरी जन्मभूमि ! कश्मीरियत आप का हार्दिक गर्मजोशी से आपका स्वागत करती है! अमित शाह के जम्मू-कश्मीर दौरे के साथ, लोगों तक पहुंचने की कोशिश में केंद्र सकारात्मक कदम उठा रही है। झेलम और चिनाब नदियों में काफी खून बहा है। जगमगाती तवी नदी तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के आगमन का इंतजार करती है। कश्मीर पर मेरे अनेक लेख प्रकाशित हुऐ हैं। खुशहाल और शांतिपूर्ण आबादी वाले समृद्ध राज्य के उदय पर सभी की निगाह केंद्रित है। 'गर फिरदौस बार रूह-ए-ज़मीन अस्त, हमी अस्त हमी अस्त हमी अस्त'; अमीर खुसरो का यह दोहा अब त्रिशंकु समान है ! अमित शाह की यात्रा निस्संदेह एक सकारात्मक कदम है, लेकिन कश्मीर के लोगों के घाव इतने गहरे हैं कि इन्हें भरने में थोड़ा समय लगेगा। राज्य को सामान्य स्थिति में ले जाने के लिए खुद अमित शाह घाटी में गए । उन्होंने कहा कि वे कुछ साल पहले ही सत्ता में आए हैं। इससे पहले यह राजवंशों का शासन था। राज्यपाल मनोज सिन्हा के लिए कश्मीर की आर्थिक समृद्धि अहम है। मेरे सुनहरे दिनों में कश्मीर घाटी वैश्विक पर्यटक का आकर्षण था जो 24×7×12 खचाखच भरा जाता था। सर्दी के मौसम में श्रीनगर से कोकड़नाग से लेकर पहलगाम और गुलमर्ग तक पूरी कश्मीर घाटी में जाम हो जाता था। राजस्व की घाटी में कमी नहीं थी। कश्मीरी हस्तशिल्प, हथकरघा, केसर आदि का निर्यात भारत का गौरव है। राष्ट्रपति शासन के नियमों के तहत, लोकतांत्रिक संरचना को घाटी में वापस लाने का प्रयास किया जाएगा। हालाँकि राष्ट्रपति शासन लगाने में अनुच्छेद 360 के बार-बार उपयोग ने अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार दिया है। समय-समय पर नागरिकों के खिलाफ सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम, AFSPA के इस्तेमाल ने स्थानीय आबादी को नाराज़ एवं भयभीत कर दिया है। आज़दी के 75 साल बाद अब समय आ गया है कि कश्मीर समस्या का समाधान किया जाए। कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का उल्लेख किया जा सकता है। 
कश्मीर के लोग भूल भी सकते हैं कि वहां पलेबिसायट जनमत संग्रह होगा। बेशक यह सच है कि पाकिस्तान के साथ कश्मीर के लोगों के बीच घनिष्ठ पारिवारिक और भावनात्मक संबध है। लेकिन यह उन्हें आतंकवादी या चरमपंथी नहीं बनाता है। वे विवाह और संतान के पारिवारिक संबंध हैं। अमित शाह से उम्मीद की जाएगी कि कश्मीर में आर्थिक समृद्धि बहाल हो जाए। रोजगार पैदा हो, युवाओं के लिए सरकारी नौकरियां भी आवश्यक हैं। पारंपरिक हथकरघा और हस्तशिल्प उद्योग को पुनर्जीवित कर सकते हैं। शंकराचार्य, हज़रतबल, छटी-पादशाही और गिरजाघर, जनता के लिए खुले हैं। अमित शाह ने कहा, "घाटी में आज के युवा विकास की बात करते हैं और हम उन्हें रोजगार देंगे"। श्रीनगर में कई प्रतिबंध लगाए गए थे। शाह ने श्रीनगर में सुरक्षा और विकास संबंधी परियोजनाओं की समीक्षा की और जम्मू में एक जनसभा को संबोधित किया। इस बीच कुल 26 बंदियों को जम्मू-कश्मीर से आगरा सेंट्रल जेल में स्थानांतरित कर दिया गया;सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम 1978 के तहत। शाह के केंद्र शासित प्रदेश के दौरे से पहले यह आदेश जारी किया गया था। हाल ही में, जम्मू-कश्मीर में निर्दोष नागरिकों की हत्याओं के बाद, लगभग 700 लोगों को हिरासत में लिया गया (PSA)। परिसीमन सरकार का एक महत्वपूर्ण निर्णय है। अमित शाह ने कहा, 'हमें परिसीमन क्यों रोकना चाहिए? परिसीमन जल्द ही होगा'। जम्मू-कश्मीर जून 2018 से केंद्रीय शासन के अधीन है। तत्कालीन राज्य के पुनर्गठन में राजनीतिक और संसदीय पुनर्स्थापित अभी भी संघवाद में भारत के प्रयोगों के साथ संघर्ष है। अमीत शाह ने तीन दिवसीय यात्रा का उपयोग जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद से हुई प्रगति को रेखांकित करने के लिए किया। 
जम्मू और कश्मीर में सार्वजनिक कार्यक्रमों और आधिकारिक कार्यक्रमों की एक श्रृंखला के माध्यम से, गृह मंत्री का एकमात्र ध्यान कश्मीर पर भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक व्याखन को दोहराने पर था। उन्होंने कहा कि तीन परिवारों ने जम्मू-कश्मीर की उन्नति पर रोक लगाई। केंद्र कश्मीर पर बातचीत से आज़ादी या स्वायत्तता के सवाल को हटाने में कामयाब रहा है। कश्मीर अभी भी कई मुद्दों का सामना कर रहा है और यह दिखावा करना कि कश्मीर में कोई राजनीतिक समस्या नहीं है जिस पर चर्चा या समाधान किया जाना है, एक भ्रम है। अब जबकि केंद्र ने राज्य की बहाली को एक अस्पष्ट राजनीतिक प्रक्रिया का अंतिम खेल बना दिया है, उसे लोगों के साथ बातचीत के लिए माध्यम स्थापित करने चाहिए। 24 जून, 2021 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक नेताओं से मुलाकात की थी, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इसके विपरीत, शाह के तीन दिनों के संदेश ने घाटी और जम्मू के लोगों के बीच विभाजन पर ज़ोर दिया। हाल की हिंसा के पीड़ितों से मिलने के लिए शाह का यह एक अच्छा प्रयास था। जम्मू-कश्मीर को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से सशक्त बनाने के लिए और भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। यह आशा की जाती है कि कश्मीर के लोगों के लिए केंद्र की 'ओलिव ब्रांच' को कश्मीर के लोगों तक केंद्र की सकारात्मक रूप में लिया जाए।🍁
~नीलम महाजन सिंह~
(वरिष्ठ पत्रकार, विचारक, राजनीतिक समीक्षक, पूर्व दूरदर्शन समाचार संपादक, मानवाधिकार संरक्षण अधिवक्ता व लोकोपकारक)
http://neelammahajansingh.blogspot.com/2021/10/neelam-mahajan-singhs-article-on-jammu.html
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