लखीमपुर खीरी से उपजे सवाल: दो-टूक: नीलम महाजन सिंह, हरि-भूमि 12.10.2021

#नीलम_महाजन_सिंह के 'दो-टूक' 
आप की सेवा हेतु मेरा लेख #हरिभूमि,12.10.2021 राष्ट्रीय संस्करण: दिल्ली, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ, झारखंड ...
'लखीमपुर खीरी से उपजे सवाल':-
~नीलम महाजन सिंह~
☆ लखीमपुर खीरी में हिंसा चिंताजनक है। जिस केंद्रीय गृह राज्यमंत्री पर देश की सुरक्षा का दायित्व है, उनके कथित समर्थकों ने गाड़ी से प्रदर्शनकारी किसानों को रौंद दिया, जिसमें चार किसानों की मौत हो गई। प्रतिक्रियास्वरूप आंदोलनकारी किसानों ने भी चार लोगों की पीट कर जान ली। इस हिंसा के दौरान घायल एक पत्रकार रमन कश्‍यप की भी बाद में मौत हुई। इन नौ मौतों के जिम्‍मेदार कौन हैं? ऐसा नहीं होना चाहिए था। सवाल है कि आखिर उत्‍तर प्रदेश पुलिस कहां थी, क्‍या कर रही थी? कार्यक्रम तय था, आंदोलनकारी किसान विरोध करेंगे, इसकी भी जानकारी थी, इसके बावजूद अगर इतनी बड़ी घटना घटी, तो निश्चित ही पुलिस व राज्‍य प्रशासन की लापरवाही मानी जाएगी। जिनके कंधों पर कानून-व्‍यवस्‍था सुचारू रखने की जिम्‍मेदारी थी, उनको कानून के कटघरे में क्‍यों नहीं खड़ा किया जाना चाहिए?
लखीमपुर हिंसा की जांच में उत्तर प्रदेश सरकार की हीलहवाली के चलते ही सर्वोच्‍च न्‍यायालय को संज्ञान लेना पड़ा। लखीमपुर खीरी कांड पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह यूपी सरकार द्वारा हिंसा मामले की जांच में अब तक की गई कार्रवाई से संतुष्ट नहीं है। चीफ जस्टिस एन.वी. रमना की बेंच ने उत्तर प्रदेश सरकार के वकील हरीश साल्वे से पूछा कि हत्या का मामला दर्ज होने के बाद भी आरोपियों की गिरफ्तारी क्यों नहीं की गई है? ऐसा करके आप क्या संदेश देना चाहते हैं? प्रधान न्‍यायाधीश के अलावा जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली भी बेंच में शामिल थे। किसानों को रौंदने के मुख्‍य आरोपित आशीष मिश्रा की गिरफ्तारी भी तब हुई, जब सुप्रीम कोर्ट ने नाराज़गी जताई। उच्चतम न्यायालय में दाखिल यूपी पुलिस की 'स्टेटस रिपोर्ट' पर सुप्रीम कोर्ट ने उनकी कार्यशैली की भर्त्सना करते हुए एफआईआर में शामिल लोगों को गिरफ्तार करने के निर्देश दिए। लखीमपुर खीरी में 3 अक्टूबर को हुई हिंसा में 4 किसानों समेत 8 लोगों की मौत के मामले में केंद्रीय गृहराज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे आशीष मिश्र मुख्य आरोपित है। यूपी पुलिस ने लखीमपुर हिंसा मामले में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्र समेत 14 के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। धारा 302, 120-बी और अन्य धाराओं में यह केस दर्ज किया गया है। जब भी धारा 302, 120-बी, सी.आर.पी.सी., लगई जाती है तो हत्या के मामले में संदिग्ध लोगों को हिरासत में लेना आवश्यक होता है। किसी सरकार के लिए इससे ज्‍यादा असहज स्थिति क्‍या होगी? क्‍या उत्तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ की सरकार को तत्‍परता व निष्‍पक्षता से इस मामले की जांच नहीं करनी चाहिए थी, जिससे कि सुप्रीम कोर्ट को संज्ञान लेना ही नहीं पड़ता। आखिर सरकारें कब तक सलेक्टिव कदम उठाती रहेंगी? राज्‍य सरकारें कब तक पुलिस तंत्र का दुरुपयोग करती रहेंगी?
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी अभी तक पद पर बने हुए हैं। बेशक कहा जा सकता है क‍ि मामले में उनके बेटे आरोपित हैं, वे नहीं हैं, लेकिन क्‍या नैतिकता के आधार पर अजय मिश्र को मंत्री पद से इस्‍तीफा नहीं देना चाहिए था? हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी इस मामले की जांच होने तक अपने गृह राज्‍य मंत्री से इस्‍तीफा ले लेना चाहिए था। इससे सकारात्‍मक संदेश ही जाता। मोदी सरकार मिसाल कायम कर सकती थी। लेकिन देखा गया क‍ि अजय मिश्र केवल केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मिले और शायद मोदी सरकार उतने भर से संतुष्‍ट हो गई। अगर हमें शासन-प्रशासन को सख्‍त संदेश देना है, उसे सुधारना है, लोकतंत्र को मज़बूत बनाए रखना है, आम जनता का सरकार के प्रति विश्‍वास बनाए रखना है तो सरकार के मुखिया को सख्‍त फैसले लेकर नजीर पेश करना होगा।   
क्‍या सरकार को नहीं लगता है कि लखीमपुर खीरी में आठ लोगों की हिंसा 'नरसंहार' है? सच तो यह है कि यह 'मॉब लिंचिंग' भी थी। कश्‍मीर में 5 दिनों में 7 नागरिकों की हत्‍या, राजस्‍थान में दलितों की सरेआम हत्‍या सरकारों की कमजोरियां ही दिखाती हैं। राजनीति के लिए अपराधिक षड्यंत्र रचे जाते हैं, अपराधिक घटना को भी धर्म से जोड़ा जाता है। सभी दल सलेक्टिव राजनीति करते हैं। कांग्रेस नेता लखीमपुर खीरी जाते हैं, लेकिन कश्‍मीर या राजस्‍थान के हनुमानगढ़ नहीं जाते हैं। यह बहुत संकीर्ण मनःस्थिति है। यह पहली बार नहीं है कि इस तरह की हत्याएं हुई हैं। इसके बाद भी अगर हमारी सरकारें सख्‍त संदेश देने में नाकाम रहती हैं, तो भारत मज़बूत शासन व्‍यवस्‍था का तंत्र कैसे खड़ा कर सकेगा? क्‍या राजनीति के लिए हम अपने लोकतंत्र को ही कमजोर नहीं कर रहे हैं?
लखीमपुर खीरी की इस अपराधिक घटना के बाद अनेक ऐसे वीडियो वायरल हो रहे हैं जिनकी विश्वसनीयता पर लैब टेस्ट होने आवश्यक हैं। वरुण गांधी ने एक वीडियो जारी किया जिसमें स्पष्ट रूप से आशीष मिश्र 'थार' जीप चलाते हुए नज़र आए। उत्तर प्रदेश सरकार ने यह घोषणा की है कि सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जज द्वारा एक उच्च स्तरीय कमेटी, 15 दिन के अंदर रिपोर्ट देगी। इसके अध्ययन के उपरांत कार्रवाई की जाएगी। यह आवश्यक था कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जो कि वैसे तो कानून से संबंधित सख्त निर्णय लेते हैं, लखीमपुर खीरी को संवेदनशीलता से क्‍यों नहीं लिया। न्‍यायिक जांच, एसआईटी जांच में लखीमपुर खीरी हिंसा का हर पहलू सामने आना चाहिए और बिना भेदभाव गुनहगारों को सजा मिलनी चाहिए। जांच एजेंसी, न्‍याय व्‍यवस्‍था और सरकार में जनता का भरोसा बने रहना जरूरी है। इन्‍हें संविधान व कानून के दायरे में काम करते चाहिए, ताकि निष्‍पक्ष इंसाफ हो सके।
लखीमपुर खीरी की घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि हमारी 75 वर्ष की आज़दी के बाद भी देश में नागरिकों, किसानों के प्रति सद्भाव और संवेदनशीलता नहीं है। 3 कृषि कानूनों पर सरकार के साथ समझौता होना दुर्लभ है। गतिरोध इस स्थिति में आ गया है। क्यों किसान अब थोड़ा एग्रेसिव हो रहे हैं? एक साल हो गया और यह जरूरी है कि किसान आंदोलन को समाप्त करने के लिए सरकार कुछ कदम उठाये। 
लखीमपुर खीरी की घटनाक्रम के बाद, यूपी सरकार विपक्ष के निशाने पर है। लखीमपुर खीरी के इस अपराधिक मामले में यूपी सरकार की कार्यप्रणाली ने उसकी निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लगा है। इसके क्या कारण हैं? इसका भी भाजपा को अध्ययन करना आवश्यक है। भारत एक विशाल देश है और इसमें धर्म या जाति को लेकर विवाद करना सही नहीं है। भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का बयान जरूर आया क‍ि योगी आदित्यनाथ की सरकार में अपराघियों को बख्‍शा नहीं जाएगा। क्‍या सच में? पीएम नरेंद्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह अभी तक चुप हैं। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु का यह बयान याद आ रहा है कि स्वतंत्र भारत में किसी भी नागरिक की हत्या हमारे संविधानिक अधिकारों का हनन् है। किसी की भी जान लेना एक कानूनी अपराध है और इस पर कठिन से कठिन कार्रवाई की जानी चाहिए। भाजपा तो पार्टी विद डिफरेंस है! भाजपा सरकारों को अपराधों के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस दिखाते हुए निष्‍पक्ष कार्रवाई करके नजीर पेश करना चाहिए।
~#नीलम_महाजन_सिंह~

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