संसद मे राजनैतिक गतिरोध पर नरेंद्र मोदी सरकार का असमंजस: नीलम महाजन सिंह

#dainikvirarjun newspaper published my article today 11.08.2021 
संसदीय राजनैतिक गतिरोध पर नरेंद्र मोदी सरकार का असमंजस: 
नीलम महाजन सिंह

गत संसद अधिवेशन में विपक्ष का गतिरोध चर्म सीमा पर है। प्रजातंत्र में विपक्ष के राजनैतिक दलों को जनता के मुद्दों को, लोक सभा और राज्य सभा में उठाने और अपने विचार व्यक्त करने की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए। परंतु इस मॉनसून सत्र में विपक्षी दलों ने संसदीय कार्यप्रणाली को ही रोक दिया है। पिगेसेस स्पाइवेयर सनूपगैट स्कैंडल, तीन फार्म एक्टस, किसान आंदोलन और उससे जुड़ी समस्यायें, पेट्रोल एवं डीज़ल की बड़ती कीमतें, मुद्रा स्फीति, स्वास्थ्य सेवाओं की बेहाली, कोरोना काल की समस्यायें, कोरोना वैक्सीन मैन्युफैकचरर्स की समस्यायें आदि अनेक मुद्दों पर संसद में चर्चा होनी आवश्यक है। परन्तु पिछले सप्ताह संसद में मानो युद्ध आरंभ हो गया है! पिगेसेस व्हाट्सऐप कांड में अनेक राजनेताओं, पत्रकारों, न्यायधीशों, सरकारी अफसरों के नाम सामने आ रहे हैं। इस प्रकार संसद के अंदर खींचातानी और बाहर राजनैतिक जिंगोईज़म से 'पार्लियामेंट मयूट-स्टिल मोड' में आ गई है। कश्मीर के विभाजन का मुद्दा बहुत संवेदनशील है। संसद में सांसदों को अपनी आवाज़ उठाने से कोई नहीं रोक सकता। नरेंद्र मोदी-अमित शाह सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पिगेसेस स्पाइवेयर स्कैंडल पर  संसद में चर्चा का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। फिर अब प्रधान मंत्री, कांग्रेस को संसद में हो रहे गतिरोध का दोष दे रहे हैं। बहुत दिलचस्प बात यह है कि बिहार के मुख्य मंत्री नीतिश कुमार ने भी यह ऐलान किया है कि केंद्र सरकार को पिगेसेस स्पाइवेयर कांड की जांच करनी चाहिए। क्या कारण है कि नीतिश कुमार के इस ब्यान पर भाजपा प्रवक्ताओं की कोई प्रतिक्रिया नही आई? पिगेसेस जासूसी कांड पर सरकार असमंजस मे है। दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा आठ महीने से चल रहे किसान आंदोलन का है। 800 आंदोलनकारियों की मृत्यु हो चुकी है। मीनाक्षी लेखी ने तो उनहें 'मवाली' कह कर किसानों के घाव पर नमक छिड़कने का कार्य किया है।

क्या यह हमारे अन्न दाताओं  के साथ ज्यादती नहीं है ? कुछ 'आलिव ब्रांच' और किसानों से बातचीत कर उपाय डूंढने का प्रयास कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को करना चाहिए। परंतु इस पर भी गतिरोध है। वैसे पंजाब अति सम्वेदनशील राज्य है, जिसकी सिमायें पाकिस्तान से जुड़ी हुई हैं। निकाई पंचायत एवं नगर निगम चुनावों में, पंजाब में भाजपा का पत्ता साफ हो गया है। किसान आंदोलन के आठ महिनों में भी सरकार ने कोई मध्य मार्ग क्यों नहीं ढूंढा? तीसरा, कश्मीर में धारा 370 को हटाकर, मुख्य मंत्रियों को 'गुपकार गैंग' कह कर गिरफ्तार करना भी, संसद में महत्वर्ण मुद्दा  है। चोथा 'डायन महंगाई' भी, आम नागरिक को प्रताड़ित कर रही है। कच्चे तेल, डिज़ल, लिक्विड पेट्रोलियम गैस सिलेंडर का ₹850 तक जाना और पेट्रोल की कीमत का ₹100 को पार कर जाना, क्या संसद संवाद के मुद्दे नहीं हैं? संसद में इस गतिरोध को कैसे समाप्त किया जाये? फिर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खढ़गे से संसद चलाने पर चर्चा की है। परंतु इसका कोई समाधान नही निकला है। क्या सरकार को अनेक आर्थिक राजनैतिक सामाजिक मुद्दों पर घेरने के लिये विपक्ष में ऐकता है ? अभी के लिए तो राहुल गांधी की 'ब्रेकफास्ट नीति' जिसमें कांसटिटयूशन क्लब से संसद तक पदयात्रा और साईकल चलाकर, 17 राजनैतिक दलों ने हिस्सा लेकर अपना रोष व्यक्त किया है। वैसे जब भाजपा ने 22 दिन तक प्रधान मंत्री डाः मनमोहन सिंह की सरकार के समय संसद को चलने नही दिया था तो स्वर्गीय अरूण जेटली ने कहा था कि "संसदीय गतिरोध भी प्रजातांत्रिक प्रणाली का हिस्सा है"। यही तर्क और सहमति लोक सभा में स्वर्गीय सुषमा स्वराज ने भी दी थी। फिर विपक्ष का आरोप है कि जब वे संसद में सरकार की आलोचना करते हैं तो उनके माईक मयूट मोड पर कर दिये जाते हैं। संसद टी.वी. पर विपक्ष को ब्लैक आउट करने का भी आरोप लगाया जा रहा है। नैशनल सेक्योरिटी एक्ट के राजनैतिक दुरुपयोग, अमर्यादित भाषा का प्रयोग तथा मीडया को सरकारी भोंपू बनाने पर संसद मे चर्चा आवश्यक है। फिर गत सप्ताह प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' में संसदीय कार्य में बाधा डालने पर विपक्ष की निंदा की है। अब सरकार बिना चर्चा किये ही, अनेक कानून ध्वनी-वोट से पारित कर रही है। इससे सांसदों द्वारा संशोधन प्रस्ताव लाने पर भी उनके अधिकारों का हनन हो रहा है। वैसे मोदी सरकार को वही थाली विपक्ष परोस रहा है जो कि, जब भाजपा विपक्ष मे थी तो यू.पी.ऐ. सरकार के साथ उन्हें परोसी थी। इस संवैधानिक गतिरोध से करोड़ों रुपयों का नुकसान तो हो ही रहा है। नरेंद्र मोदी सरकार को विपक्ष को भी साथ लेकर चलना चाहिए। इस करोना संक्रमण काल में प्रजातंत्र के चारों स्तम्भों, संसद एवं  विधान सभा, नौकरशाही, न्याय प्रणाली एवं मिडिया को अपने अन्तरात्मा में झांक कर देखना चाहिए कि क्या "हम भारत के लोगों..." के साथ संसद में न्याय हो रहा है ? नहीं, बिल्कुल नहीं!  डेरेक ओ. ब्रायन ने धाढम-धाढ बिल पास किये जाने पर उसे 'चाट-पापड़ी' की संज्ञा दी है। फिर संसद में गतिरोध और चर्चा में भाग न लेने पर विपक्षी दल, भाजपा द्वारा 22 दिन संसद नहीं चलने देने पर कहते हैं, वाह भाई 'तेरा टामी-टामी, मेरा टामी कुत्ता'? यानी कि जब भाजपा ने 22 दिन तक संसद को नही चलने दिया, तो उसे प्रजातांत्रिक प्रणाली कहा गया और आज जब विपक्ष वही कर रहा है, तो उन्हें संसद से निष्कासित किया जा रहा है। संसदीय कार्य आरम्भ हो, इसका दायित्व सरकार पर है। वास्तव में नरेंद्र मोदी सरकार को कोई समाधान ढूंढ कर, सरकार के दृष्टिकोण को साफ करना चाहिए। संसद में विचारों का आदान-प्रदान, चर्चा तथा कानून बनाने की प्रकिया आरम्भ है। भाजपा पूर्ण बहुमत मे है, तथा कानून पारित करने में उन्हें कोई कठिनाई नहीं है। नरेंद्र मोदी को इस संसदीय गतिरोध का समाधान निकालना चाहिए। इस प्रकार के अड़ियल रवैये को विपक्ष को भी बदलना चाहिए। विरोध तो काला रिबन-कपढे की पट्टी बांघ कर भी किया जा सकता है। राष्ट्र हित को हमे सर्वोपरी है।
नीलम महाजन सिंह 
(वरिष्ठ पत्रकार, विचारक, राजनैतिक समीक्षक, पूर्व दूरदर्शन समाचार संपादक, मानवाधिकार संरक्षण अधिवक्ता और लोकोपकारक)
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