दैनिक वीर अर्जुन, 25.08.2021 में प्रकाशित नीलम महाजन सिंह का लेख: कश्मीर में अनुच्छेद 370 रद्द होने के परिणाम। कश्मीर में अनुच्छेद 370 रद्द होने के परिणाम:नीलम महाजन सिंह
दैनिक वीर अर्जुन, 25.08.2021 में प्रकाशित नीलम महाजन सिंह का लेख: कश्मीर में अनुच्छेद 370 रद्द होने के परिणाम।
कश्मीर में अनुच्छेद 370 रद्द होने के परिणाम:
नीलम महाजन सिंह
"गर फिरदौस बर रूये ज़मी अस्त, हमी अस्त, हमी अस्त, हमी अस्त" (धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है, यही हैं) अमीर खुसरो का यह शेर आज तक कानों में गूँजता है। कश्मीर घाटी को 'स्विट्जरलैंड इन इंडिया'; उसकी ख़ूबसूरती, प्राकृतिक सौंदर्य, संसाधनों, पर्यावरण, पर्यटन आदि के कारण कहा जाता है। जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा ने हमें भेंटवार्ता में कहा कि जल्द ही कश्मीर घाटी में परिसीमन की प्रक्रिया आरंभ हो जायेगी और चुनाव भी घोषित किए जायेंगें। पिछले दो वर्षो में कश्मीर घाटी को जम्मू--लद्दाख से अलग करने का क्या प्रभाव हुआ है? कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के क्या लाभ हैं?06.08.2021 को मिडिया कवरेज के लिए कुछ चुनिंदा पत्रकारों ने 'ग्राऊंड रिपोर्ट' भेजी। क्या कश्मीर में राष्ट्रपति शासन काल की कोई सीमा है ? कश्मीर घाटी में इस वर्ष पर्यटकों की संख्या काफी अधिक हुई है। इससे घाटी को राजस्व भी प्राप्त हुआ। परन्त क्या इस सूचकांक से यह माना जाए कि कश्मीर में शांति बहाल हो गई है। यदि ऐसा है तो फिर विधान सभा को गठित कर, लोकतांत्रिक, प्रणालीबद्ध कश्मीर का मुख्य मंत्री भी होना चाहिए। कश्मीर के नेता, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से 14.06.21 को मिले। क्या 'मन से मन की बात' हुई ? प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषित किया, "दिल और दिल्ली से कश्मीर की दूरी कम होनी चाहिए!" प्रधान मंत्री का आग्रह महत्वपूर्ण है, परंतु क्या हम कश्मरियों का दिल जीत पा रहे हैं? 1947 से 2021 तक के काल में जम्मू-कश्मीर में अनेक राजनैतिक उतार-चढ़ाव हुए । 1947 में महाराजा हरी सिंह, जम्मू-कश्मीर के शासक ने, भारत सरकार के साथ 'कश्मीर ऐक्सेशन एकॉर्ड' द्वारा, कुछ भौगोलिक क्षेत्र भारत को दिया। फिर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर, पी.ओ.के. और भारत सरकार में कश्मीर को लेकर दुश्मनी आज तक चल रही है। अब भी सीमाओं पर क्रास-बार्डर टैररिज़म जारी है। आतंकवाद को नियंत्रित कर, समाप्त करना भारत सरकार के लिए महत्वपूर्ण चुनौती है। पंडित जवाहरलाल नेहरु, मुहम्मद अली जिन्ना, लार्ड माउंटबैटन में कई दौरों की चर्चा हुई, परंतु कशमीर घाटी पर वे समाधान ढूंढने में असमर्थ रहे। देश के विभाजन के साथ कश्मीर का भी विभाजन हो गया। जम्मू-कश्मीर-लद्दाख एक राज्य बना। बख्शी गुलाम मुहम्मद, शैख मुहम्मद अब्दुल्लाह, जवाहर लाल नेहरु, गोविंद वल्लभ पंत ने मिलकर कश्मीर पर निर्णय लिया। 1947 में विभाजनोपरांत, पाकिस्तान से अधिक दूरियां बड़ीं। पाकिस्तान-हिन्दुस्तान के वज़ीर-ऐ-आज़मों, इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो द्वारा हस्ताक्षरित 'शिमला समझौते' के बावजूद, आज तक शांति स्थापित नहीं हो पाई। समय आ गया है कि हमें अतीत से बाहर निकलकर आगे बढ़ना चाहिए। केंद्र सरकार को भी चाहिए कि बहुप्रतीक्षित 'कश्मीरियत, इंसानियत व जम्हूरियत' को वास्तविक स्वरूप प्रदान करे। जब कश्मीर भारत का मुकुट माना जाता है, तो कश्मीर के लोगों को भी भारतीय मानना चाहिए। कश्मीरियों को भी भारतीयता अपनानी चाहिए। अनुच्छेद 370 द्वारा जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार देने के कुछ मूलभूत कारण थें। 1947 के खूनी विभाजन के बाद, अधिकांश शरणार्थी जम्मू-कश्मीर मे ही आये जहां अनेक शरणार्थी कैम्प लगे। कुछ वर्षोप्रांत वे लोग देश के विभिन्न राज्यों में बस गए। जम्मू-कश्मीर-लद्दाख के साथ पाकिस्तान और चीन की सीमायें भी हैं। हमारे सेना, वायुसेना के बैस-कैम्प, उधमपुर, जम्मू, श्रीनगर में हैं। इन डिफेंस संस्थानों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए। कश्मीर का भौगोलिक क्षेत्र, मौसम परिवर्तन की अस्थिरता, बर्फानी हिस्से, कश्मीर की जियो-सट्रेटीजिक परिस्थित को और कठिन बना देते हैं। अनेक अनुसूचित जनजातियों के लोग दूर-दराज तक बहुत ही दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों मे रहते हैं। इन सभी कारणों से अनुच्छेद 370 का 1947 में होना आवश्यक था। डाः श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी इसके साक्षी रहे। जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़ती को पाक-राग नहीं अलापना चाहिए। गुपकार अलायंस में शामिल, महबूबा मुफ्ती को समझना चाहिए कि प्रधानमंत्री से वार्ता कश्मीरी नेताओं के साथ कश्मीर पर हो रही है, इसलिए इसमें पाकिस्तान की अहमियत नहीं है। भारत सरकार का नज़रियाा स्पष्ट है कि पाकिस्तान के साथ आतंकवाद एंव पी.ओ.के. पर बात होगी। महबूबा ने सरकार में काम किया है, इसलिए केवल वोट बैंक की राजनीति के लिए उन्हें पाक को शामिल करने की बात नहीं करनी चाहिए। इस मामले में 'गुपकार अलायंस' के प्रमुख एन.सी. नेता एंव पूर्व सी.एम. फारूख अब्दुल्ला ने दूरदर्शिता व समझदारी दिखाई है। संघीय व्यवस्था में जम्मू-कश्मीर के लिए भी अच्छा है कि वह संवैधानिक संघ को पूर्णतया स्वीकार करें। अनुच्छेद 370 जैसे विशेष प्रावधान का कश्मीरी दलों द्वारा, समय-समय पर दुरुपयोग तो हुआ ही है। यह आवश्यक है कि जम्मू-कश्मीर को पुन: पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाय व राज्य में लोकतंत्र बहाली शीघ्र हो। भारत सरकार पर नैतिक व विदेशी दोनों दबाव हैं, लेकिन इसका नतीजा तभी निकलेगा, जब सरकार व कश्मीरी नेता बिना अगर-मगर किसी सहमति पर पहुंचें। इसके लिए हमें कश्मीर के अतीत में जाना होगा। कश्मीर ने अभी तक आतंक का भयानक रक्तपात देखा है। लाखों का खून बह चुका है। 75 वर्षोप्रांत भी कश्मीर का मुद्दा सुलग ही रहा है। 'इंस्ट्रूमेंट आफ एक्सेशन' 26 अक्तूबर 1947 को तत्कालीन महाराजा हरि सिंह द्वारा जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय किया गया। उसके बाद पाकिस्तान का भारत से तीन बार युद्ध करना व हारना, पूर्वी पाकिस्तान का बांग्लादेश बनना, कश्मीर के एक हिस्से पर पाक का अवैध कब्जा रह जाना और कश्मीर में प्रायोजित आतंकवाद को श्रय देना आदि सबके सामने हैं। कश्मीर में आतंकवाद के पीछे पाकिस्तान व कुछ विदेशी ताकतों का हाथ है। वैसे तो मुफ़ती मोहम्मद सईद और महबूबा मुफ़ती को भाजपा ने समर्थन देकर सरकार का गठन किया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा जम्मू-कश्मीर की तत्कालिक राजनैतिक स्थिति पर विचार विमर्श के लिए, सभी राजनैतिक दलों की सर्वदलीय बैठक एक महत्वपूर्ण कदम था। केवल पंचायत चुनाव हुए हैं। इसलिए वहां जल्द से जल्द लोकतंत्र की बहाली जरूरी है। सभी आठ राजनैतिक दलों ने, जिसे 'गुपकार आलियांज़' कहा जाता है, प्रधानमंत्री की बैठक में हिस्सा लिया। मुहम्मद युसुफ तारागामी, कम्युनिस्ट नेता ने स्पष्ट किया है, कि केंद्र उन्हें सभी मुद्दों पर आश्वस्त करे, जो कश्मीरीयत के लिए अनिवार्य हैं। घाटी में कश्मीर के विभाजन व अनुच्छेद 370 हटने के बाद, केंद्र को कश्मीर की ओर 'ओलिव ब्रांच' देना उचित होगा। कुछ सप्ताह पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति, जो बाइडन ने विश्व भर में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों को रोकने के लिए सभी देशों पर दबाव डाला। अमरीकी उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस ने अमेरिकी सीनेट में, कश्मीर में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों की भर्त्सना की थी। कुछ सप्ताह पूर्व कमला हैरिस ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से फोन कर बातचीत की थी। सूत्रों के अनुसार उस बातचीत में कमला हैरिस ने कश्मीर में मानवाधिकार संरक्षण व प्रजातांत्रिक, संवैधानिक प्रणाली को पुनर्स्थापित करने का आग्रह किया है। विदेश मंत्री डा: एस. जयशंकर ने अपने अमेरिकी समकक्ष एंटोनी ब्लिंकन से लंदन में भेंटवार्ता की है, जिसमें कश्मीर के हालात पर चर्चा हुई। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार संगठन (यू.एन.एच.आर.सी.) ने भी निरंतर कश्मीर संबंधित गतिरोध पर कड़ा संदेश दिया है। यूरोपीय संघ ने कश्मीर में दो साल से ठप राजनीतिक परिस्थित को निंदनीय माना है। 1947 में कश्मीर के भारत में विलय के समय में, अनुच्छेद 370 के जरिये विशेष राज्य का स्टेटस देना, वहां के राजनैतिक एवं भौगोलिक कारणों के मद्देनजर आवश्यक था।कश्मीर में आतंकवाद व अलगाववादी ताकतें मजबूत हो रहीं हैं। 1990 से विघटनकारी गुटों तथा आतंकवाद ने कश्मीर और केंद्र के संबंधों के आपसी विश्वास पर प्रश्न चिन्ह लगाये। 'मेक नामरा लाइन' (एल.ओ.सी.) का उल्लंघन हर पल होता रहा। संघ और भाजपा के घोषणा पत्र में कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करना मह्त्वपूर्ण मुद्दा था। साथ ही डाः श्यामा प्रसाद मुखर्जी के सपने 'एक देश एक प्रदेश, एक विधान एक निशान' के सपने को मोदी सरकार ने पूरा किया है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को अटल बिहारी वाजपेयी के सिद्धांत, 'कश्मीरियत, इंसानियत व जम्हूरियत' को पुन: स्थापित कर, कश्मीरियों के ज़ख्मों पर मरहम लगाने का कार्य करना चाहिए। मैं, 'कश्मीर की बेटी' होने के नाते समझती हूं कि कश्मीर में आतंकवाद, अलगाववाद और पाकिस्तान का हस्तक्षेप अभी खत्म नहीं हुआ है। इसलिए मेरा मानना है कि कश्मीर में लोकतंत्र की बहाली, पूर्ण राज्य का दर्जा देना, राजनैतिक नेताओं को नियमानुसार रिहा करना, कश्मीर में रोजगार पैकेज की घोषणा, आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट (AFSPA) के प्रयोग को नियंत्रित करना, आम जन-मानस की आवाज़ सुनना, बार्डर एरिया में रहने वाले लोगों को विशेष संरक्षण देना आदि प्रयास तत्काल किए जाने चाहिए। कश्मीर में शान्तिपूर्ण राजनैतिक स्थिति को पुनर्स्थापित करना मोदी सरकार की महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जायेगी। फिर अनुच्छेद 370 पूर्वोत्तर के सभी प्रदेशों में है। जब तक आतंकवाद को नियंत्रित नहीं किया जायेगा, नरेंद्र मोदी-अमित शाह सरकार को कश्मीर घाटी की ओर विशेष ध्यान केंद्रित करना होगा।
नीलम महाजन सिंह
(वरिष्ट पत्रकार एवं राजनैतिक समीक्षक, पूर्व दूरदर्शन समाचार संपादक, मानवाधिकार संरक्षण अधिवक्ता व लोकोपकारक)
singhnofficial@gmail.com
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